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पञ्चम अध्याय |
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महज्जनों ने लघुता की अति प्रशंसा की है, देखो! अध्यात्मपुरुष श्री चिदानन्दजी महाराज ने लघुता का एक स्तवन ( स्तोत्र ) बनाया है उस का भावार्थ यह है कि-चन्द्र और सूर्य बड़े हैं इस लिये उन को ग्रहण लगता है परन्तु लघु तारागण को ग्रहण नहीं लगता है, संसार में यह कोई भी नहीं कहता है कि-तुम्हारे माथे लागूँ किन्तु सब कोई यही कहता है कि तुम्हारे पगे लागू, इस का हेतु यही है कि-चरण ( पैर ) दूसरे सब अंगों से लघु हैं इस लिये उन को सब नमन करते हैं, पूर्णिमा के चन्द्र को कोई नहीं देखता और न उसे नमन करता है परन्तु द्वितीया के चन्द्र को सब ही देखते और उसे नमन करते हैं क्योंकि वह लघु होता है, कीड़ी एक अति छोटा जन्तु है इस लिये चाहे जैसी रसवती ( रसोई ) तैयार की गई हो सब से पहिले उस ( रसवती ) का स्वाद उसी (कीड़ी ) को मिलता है किन्तु किसी बड़े जीव को नहीं मिलता है, जब राजा किसी पर कड़ी दृष्टिवाला होता है तब उस के कान और नाक आदि उत्तमाङ्गों को ही कटवाता है किन्तु लघु होने से पैरों को नहीं कटवाता है, यदि बालक किसी के कानों को खींचे, मूँछों को मरोड़ देवे अथवा शिर में भी मार देवे तो भी वह मनुष्य प्रसन्न ही होता है, देखिये ! यह चेष्टा कितनी अनुचित है परन्तु लघुतायुक्त बालक की चेष्टा होने से सब ही उस का सहन कर लेते हैं किन्तु किसी बड़े की इस चेष्टा को कोई भी नहीं सह सकता है, यदि कोई बड़ा पुरुष किसी के साथ इस चेष्टा को करे तो कैसा अनर्थ हो जावे, छोटे बालक को अन्तःपुर में जाने से कोई भी नहीं रोकता है यहाँ तक कि वहाँ पहुँचे हुए बालक को अन्तःपुर की रानियाँ भी स्नेह से खिलाती
हैं किन्तु बड़े हो जाने पर उसे अन्तःपुर में कोई नहीं जाने देता है, यदि वह चला जावे तो शिरश्छेद आदि कष्ट को उसे सहना पड़े, जब तक बालक छोटा होता है तब तक सब ही उस की सँभाल रखते हैं अर्थात् माता पिता और भाई आदि सब ही उस की सँभाल और निरीक्षण रखते हैं, उस के बाहर निकल जाने पर सब को थोड़ी ही देर में चिन्ता हो जाती है कि बच्चा अभी तक क्यों नहीं आया परन्तु जब वह बड़ा हो जाता है तब उस की कोई चिन्ता नहीं करता है, इन सब उदाहरणों से सारांश यही निकलता है कि जो कुछ सुख है वह लघुता में ही है, जब हृदय में इस ( लघुता ) के सत्प्रभाव को स्थान मिल जाता है उस समय सब खराबियों का मूल कारण आत्माभिमान और महत्वाकांक्षित्व ( बड़प्पन की अभिलाषा ) आप ही चला जाता है, देखो ! वर्त्तमान में दादाभाई नौरोजी, लाला लजपतराय और बाल गङ्गाधर तिलक आदि सद्गुणी पुरुषों को जो तमाम आर्यावर्त्त देश मान दे रहा है वह उन की लघुता (नम्रता ) से प्राप्त हुए देशभक्ति आदि गुणों से ही प्राप्त हुआ समझना चाहिये ।
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