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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
जी ने अपनी योग्यतानुसार राज्यसत्ता का अच्छा प्रबंध किया था कि जिस से सब लोग उन से प्रसन्न थे, इस के अतिरिक्त उन के सद्व्यवहार से श्री अम्बादेवी भी साक्षात् होकर उन पर प्रसन्न हुई थी और उसी के प्रभाव से मन्त्री जी ने आबू पर श्री आदिनाथ स्वामी के मन्दिर को बनवाना विचारा परन्तु ऐसा करने में उन्हें जगह के लिये कुछ दिक्कत उठानी पड़ी, तब मन्त्री जी ने कुछ सोच समझ कर प्रथम तो अपनी सामर्थ्य को दिखला कर जमीन को कब्जे में किया, पीछे अपनी उदारता को दिखलाने के लिये उस जमीन पर रुपये बिछा दिये और वे रुपये जमीन के मालिक को दे दिये, इस के पश्चात् देशान्तरों से नामी कारीगरों को बुलवा कर संगमरमर पत्थर ( श्वेत पाषाण ) से अपनी इच्छा के अनुसार एक अति सुन्दर अनुपम कारीगरी से युक्त मन्दिर बनवाया, जब वह मन्दिर बन कर तैयार हो गया तब उक्त मन्त्री जी ने अपने गुरु बृहत्खरतरगच्छीय जैनाचार्य श्री वर्द्धमान सूरि जी महाराज के हाथ से विक्रम संवत् १०८८ में उस की प्रतिष्ठा करवाई ।
इसके अतिरिक्त अनेक धर्मकार्यों में मन्त्री विमलशाह ने बहुत सा द्रव्य लगाया, जिस की गणना ( गिनती ) करना अति कठिन है, धन्य है ऐसे धर्मज्ञ श्रावकों को जो कि लक्ष्मी को पाकर उस का सदुपयोग कर अपने नाम को अचल करते हैं ।
यशोधवल परमार राज्य करता था ), इस के पीछे अजयपाल ने ईस्वी सन् १९७३ से ११७६ तक राज्य किया, इस के पीछे दूसरे मूलराज ने ईस्वी सन् १९७६ से १९७८ तक राज्य किया, इसके पीछे भोला भीमदेव ने ईस्वी सन् १२१७ से १२४१ तक राज्य किया (इस की अमलदारी में आबू पर कोटपाल और धारावल राज्य करते थे, कोटपाल के सुलोच नामक एक पुत्र और इच्छिनी कुमारी नामक एक कन्या थी अर्थात् दो सन्तान थे इच्छिनी कुमारी अत्यन्त सुन्दरी थी अतः भीमदेव ने कोटपाल से उस कुमारी देने के लिये कहला भेजा परन्तु कोटपाल ने इच्छिनी कुमारी को अजमेर के चौहान राजा वेसुलदेवको देने का पहिले ही से ठहराव कर लिया था इस लिये कोटपाल ने भीमदेव से कुमारी के देने के लिये इनकार किया, उस इनकार को सुनते ही भीमदेव ने एक बड़े सैन्य को साथ में लेकर कोटपाल पर चढ़ाई की और आबूगढ़ के आगे दोनों में खूब ही युद्ध हुआ, आखिर कार उस युद्ध में कोटपाल हार गया परन्तु उस के पीछे भीमदेव को शहाबुद्दीन गोरी का सामना करना पड़ा और उसी में उस का नाश हो गया )' इस के पीछे त्रिभुवन ने ईस्वी सन् १२४१ से से १२४४ तक राज्य किया ( यह ही चालुक्य वंश में आखिरी पुरुष था ), इस के पीछे दूसरे भीमदेव के अधिकारी वीर धवल ने वाघेला वंश को व्याकर जमाया इस ने गुजरात का राज्य किया और अपनी राजधानी को अणहिल वाड़ा पट्टन में न करके धोलेरे में की, इस वंश के विशालदेव, अर्जुन और सारंग, इन तीनों ने राज्य किया और इसी की बरकरारी में आबू पर प्रसिद्ध देवालय के निर्मापक ( बनवाने वाले ) पोरवाल ज्ञातिभूषण वस्तुपाल और तेजपाल का पाड़ाव हुआ 11
१ - इस मन्दिर की सुन्दरता का वर्णन हम यहाँ पर क्या करें, क्योंकि इस का पूरा स्वरूप तो वहाँ जा कर देखने से ही मालूम हो सकता है ||
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