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पञ्चम अध्याय ।
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सं० गोत्रों के नाम सं० गोत्रों के नाम सं० गोत्रों के नाम सं० गोत्रों के नाम ५३८ लूछा
५५५ सरभेल ५७४ सुराणा ५९३ संखलेचा ५३९ लूकड़ ५५६ साँखला ५७५ सुधेचा ५९४ संचेती ५४० लूणावत ५५७ साँड़ ५७६ सूर
५९५ संड ५४१ लूणिया ५५८ साहिबगोत ५७७ सूधा
५९६ संखवाल ५४२ लेल ५५९ साँडेला ५७८ सूरिया ५४३ लेवा ५६० साहिला ५७९ सूरपुरा ५४४ लोढा ५६१ सावणसुखा ५८० सुरहा
५९७ हगुड़िया ५४५ लोलग ५६२ साँबरा ५८१ स्थूल
५९८ हरसोरा ५६३ सांगाणी ५८२ सूकाली। ५९९ हड़िया ५४६ श्रीमाल ५६४ साहलेचा
६०० हरण ५४७ श्रीश्रीमाल ५६५ साचोरा ५८४ सेठिया ६०१ हिरण
५६६ साचा ५८५ सेठियापावर ६०२ हुब्बड़ ५४८ समधड़िया ५६७ सिणगार ५८६ सोनी ६०३ हुड़िया ५४९ सही . ५६८ सियाल ५८७ सोनीगरा ६०४ हेमपुरा ५५० सफला ५६९ सीखा ५८८ सोलंखी ६०५ हेम ५५१ सराहा ५७० सीचा-सींगी ५८९ सोजतिया ६०६ हीडाउ ५५२ समुदरिख ५७१ सीसोदिया ५९० सोभावत ६०७ हींगड ५५३ सवरला ५७२ सीरोहिया ५९१ सोठिल ६०० हंडिया ५५४ सवा ५७३ सुंदर ५९२ सोजन ६०९ हंस
शाखागोत्रों का संक्षिप्त इतिहास।। १-ढाकलिया-पूर्व समय में सोढा राजपूत थे जो कि दयामूल जैन धर्म का ग्रहण किये हुए थे, कालान्तर में ये लोग राज का काम करते २ किसी कारण से रात को भाग निकले परन्तु पकड़े जा कर वापिस लाये गये, अतः ये लोग ढाकलिया कहलाये क्योंकि पकड़ कर लाये जाने के समय ये लोग ढके हुए लाये गये थे।
२-कोचर-इन लोगों के बड़ेरे का नाम कोचर इस कारण से हुआ था कि उस के जन्म समय पर कोचरी पक्षी (जिस की बोली से मारवाड़ में शकुन लिया करते हैं ) बोला था।
१-इन ( शाखागोत्रों ) को मारवाड़ में खाँप, नख और शाख आदि नामों से कहते हैं तथा कच्छ देश के निवासी ओसवाल इन को “ओलख" कहते हैं, मारवाड़ से उठ कर ओसवाल लोग कच्छ देश में जा वसे थे, इस बात को करीब तीन सौ वा चार सौ वर्ष हुए हैं।
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