________________
६२८
जैनसम्प्रदायशिक्षा |
प्रसन्न होकर बहुत से घोड़े आदि ईनाम में देकर कडूवा जी को अपना मश्रीश्वर ( प्रधान मन्त्री ) बना दिया, उक्त पद को पाकर कडूवा जी ने अपने सद्वत्तीय से वहाँ उत्तम यश प्राप्त किया, कुछ दिनों के बाद कडूवा जी राना जी की आज्ञा लेकर अणहिल पत्तन में गये, वहां भी गुजरात के राजा ने इन का बड़ा सम्मान किया, तथा इन के गुणों से तुष्ट होकर पाटन इन्हें सौंप दिया, कडूवा जी ने अपने कर्त्तव्य को विचार सात क्षेत्रों में बहुत सा द्रव्य लगाया, गुजरात देश में जीवहिंसा को बन्द करवा दिया तथा विक्रम संवत् १४३२ ( एक हजार चार सौ बत्तीस ) के फागुन यदि छठ के दिन खरतरगच्छाधिपति जैनाचार्य श्री जिनराज सूरि जी महाराज का नन्दी ( पाट) महोत्सव सवा लाख रुपये लगा कर किया, इस के सिवाय इन्हों ने शेत्रुञ्जय का संघ भी निकाला और मार्ग में एक मोहर, एक थाल और पाँच सेर का एक मगदिया लड्डू, इन का घर दीठ लावण अपने साधर्मी भाइयों को बाँटा, ऐसा करने से गुजरात भर में उन की अत्यन्त कीर्ति फैल गई, सात क्षेत्रों में भी बहुत सा द्रव्य लगाया, तात्पर्य यह है कि इन्हों ने यथाशक्ति जिनशासन का अच्छा उद्योत किया, अन्त में अनशन आराधन कर ये स्वर्गवास को प्राप्त हुए ।
कडूबा जी से चौथी पीढ़ी में जेसल जी हुए, उन के बच्छराज, देवराज और हंसराज नामक तीन पुत्र हुए, इन में से ज्येष्ठ पुत्र बच्छराज जी अपने भाइयों को साथ लेकर मण्डोवर नगर में राव श्री रिड़मल जी के पास जा रहे और राव रिमल जी ने बच्छराज जी की बुद्धि के अद्भुत चमत्कार को देख कर उन्हें अपना मन्त्री नियत कर लिया, बस बच्छराज जी भी मन्त्री बन कर उसी दिन से राजकार्य के सब व्यवहार को यथोचित रीति से करने लगे ।
राजा कुम्भकरण में तथा राव रिड़मल जी के
कुछ समय के बाद चित्तौड़ के पुत्र जोधाजी में किसी कारण से आपस में वैर बँध गया, उस के पीछे राव रिड़मल जी और मत्री बच्छराज जी राना कुम्भकरण के पास चित्तौड़ में मिलने के लिये गये, यद्यपि वहां जाने से इन दोनों से राना जी मिले झुले तो सही परन्तु उन ( राना जी ) के मन में कपट था इस लिये उन्हों ने छल कर के राव रिमल जी को धोखा देकर मार डाला, मन्त्री बच्छराज इस सर्व व्यवहार को जान कर छलबल से वहाँ से निकल कर मण्डोर में आ गये ।
राव रिड़मल जी की मृत्यु हो जाने से उन के पुत्र जोधा जी उन के पाटनसीन हुए और उन्होंने मंत्री बच्छराज को सम्मान देकर पूर्ववत् ही उन्हें मत्री रख
१ - बच्छावतों के कुल के इतिहास का एक रास बना हुआ है जो कि बीकानेर के बड़े उपाश्रय ( उपासरे) में महिमाभक्ति ज्ञानभण्डार में विद्यमान है, उसी के अनुसार यह लेख लिखा गया है, इस के सिवाय मारवाड़ी भाषा में लिखा हुआ एक लेख भी इसी विषय का बीकानेर निवासी उपाध्याय श्री पण्डित मोहनलाल जी गणी ने बम्बई में हम को प्रदान किया था, वह लेख भी पूर्वोक्त रास से प्रायः मिलता हुआ ही है, इस लेख के प्राप्त होने से हम को उक्त विषय की और भी दृढता हो गई, अतः हम उक्त महोदय को इस कृपा का अन्तःकरण से धन्यवाद देते हैं ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com