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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
नवी संख्या - बहूणी, नाहटा गोत्र ।
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धारा नगरी का राजा पृथ्वीधर पँवार राजपूत था, उस की सोलहवी पीढ़ी में जोबन और सच्च, ये दो राजपुत्र हुए थे, ये दोनों भाई किसी कारण धारा नगरी से निकल कर और जांगलू को फतह कर वहीं अपना राज्य स्थापित कर सुख से रहने लगे थे, विक्रम संवत् ११७७ ( एक हजार एक सौ सतहत्तर) में युगप्रधान जैनाचार्य श्री जिनदत्त सूरि जी महाराज ने जोबन और सच्चू ( दोनों भाइयों ) को प्रतिबोध देकर उन का महाजन वंश और बहूफणागोत्र स्थापित किया ।
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इन्हीं की औलादवाले लोग युद्ध में नहीं हटे थे इस लिये वे नाहटा कहलाये । इस के पश्चात् • लखनौ के नबाव ने इन को राजा का पद प्रदान किया था जिस से राजा बच्छराज जी के घरानेवाले लोग भी राजा कहलाने लगे थे ।
ऊपर कहे हुए गोत्रवालों में से एक बुद्धिमान् पुरुष ने फतहपुर के नबाव को अपनी चतुराई का अच्छा परिचय दिया था, जिस से नबाब ने प्रसन्न होकर कहा था कि - "यह रायजादा है" तब से नगरवासी लोग भी उसे रायजादा कहने लगे और उस की औलाद वाले लोग भी रायजादा कहलाये, इस प्रकार ऊपर कहे हुए गोत्र का निरन्तर विस्तार होता रहा और उस की नीचे लिखी हुई १७ शाखायें हुई:- :--१- बाफणा । २- नाहटा | ३- रायजादा | ४- घुल्ल । ६ - हुंडिया । ७ - जांगड़ा । ८- सोमलिया । ९ - वाहंतिया | ११- मीठड़िया । १२- वाघमार 1 दिया । १६ - पटवा ( जैसलमेरवाला )
५ - घोरवाड़ ।
१०- वसाह ।
१५-मग
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- भाभू । १४ - घरिया | १७ - नानगाणी |
दशवी संख्या - रतनपुरा, कटारिया गोत्र ।
विक्रम संवत् १०२१ ( एक हजार इक्कीस ) में सोनगरा चौहान राजपूत रतनसिंह ने रतनपुरनामक नगर बसाया, जिस के पाँचवें पाट पर विक्रम संवत् ११८१ ( एक हजार एक सौ इक्यासी ) में अक्षय तृतीया के दिन धनपाल राजसिंहासन पर बैठा, एक दिन राजा धनपाल शिकार करने के लिये जंगल में गया और सुध न रहने से बहुत दूर चला गया परन्तु कोई भी शिकार उस के हाथ न लगी, आखिरकार वह निराश होकर वापिस लौटा, लौटते समय रास्ते में एक रमणीक तालाव दीख पड़ा, वहां वह घोड़े को एक वृक्ष के नीचे बाँध कर तालाव के किनारे बैठ गया, थोड़ी देर में उस को एक काला सर्प थोड़ी ही दूर पर दीख पड़ा और जोश में आकर ज्यों ही राजाने उसके सामने एक पत्थर फेंका त्यों ही वह सर्प अत्यन्त गुस्से में भर गया और उस ने राजा धनपाल को शीघ्र ही काट खाया, काटते ही सर्प का विष चढ़ गया और राजा मूर्छित ( बेहोश ) होकर गिर दैवयोग से उसी अवसर में वहां शान्त, दान्त, जितेन्द्रिय तथा अनेक १- बहूफणा नाम का अपभ्रंश बाफणा हो गया है ॥
गया,
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