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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
यह बँचतान निद्रावस्था (नींद की हालत ) और एकाकी ( अकेले ) होने के समय में नहीं होती है किन्तु जब रोगी के पास दूसरे लोग होते हैं तब ही होती है तथा एकाएक (अचानक) न होकर धीरे २ होती हुई मालूम पड़ती है, रोगी पहिले हँसता है, बकता है, पीछे उसके भरता है और उस समय उस के गोला भी ऊपर को चढ़ जाता है, बैंचतान के समय यद्यपि असावधानता मालूम होती है परन्तु वह प्रायः अन्त में मिट जाती है। ___ कभी २ बँचतान थोड़ी और कभी २ अधिक होती है, रोगी अपने हाथ पैरों को फेंकता है तथा पछाड़ें मारता है, रोगी के दाँत बँध जाते हैं परन्तु प्रायः जीभ नहीं अकड़ती है और न मुख से फेन गिरता है, रोगी का दम घुटता है, वह अपने बालों को तोड़ता है, कपड़ों को फाड़ता है तथा लड़ना प्रारम्भ करता है। ___ जब बैंचतान बन्द होने को होती है उस समय जुम्भा (जुभाइयाँ वा उबासियाँ) अथवा डकारें आती हैं, इस समय भी रोगी रोता है, हँसता है अथवा पागलपन को प्रकट (जाहिर ) करता है तथा वारंवार पेशाब करने के लिये जाता है और पेशाब उतरती भी बहुत है। ___ खेंचतान के सिवाय-इस रोग में अनेक प्रकार का मनोविकार भी हुआ करता है अर्थात् रोगी किसी समय तो अति आनन्द को प्रकट करता है, किसी समय अति उदास हो जाता है, कभी २ अति आनन्ददशा में से भी एकदम उदासी को पहुँच जाता है अर्थात् हँसते २ रोने लगता है, उसके भरता है तथा लड़ाई करने लगता है, इसी प्रकार कभी २ उदासी की दशा में से भी एकदम आनन्द को प्राप्त हो जाता है अर्थात् रोते २ हँसने लगता है।
रोगी का चित्त इस बात का उत्सुक (चाहवाला) रहता है कि लोग मेरी तरफ ध्यान देकर दया को प्रकट करें तथा जब ऐसा किया जाता है तब वह अपने पागलपन को और भी अधिक प्रकट करने लगता है।
इस रोग में स्पर्शसम्बन्धी भी कई एक चिह्न प्रकट होते हैं, जैसे-मस्तक, क्रोड़ और छाती आदि स्थानों में चसके चलते हैं, अथवा शूल होता है, उस समय रोगी का स्पर्श का ज्ञान बढ़ जाता है अर्थात् थोड़ा सा भी स्पर्श होने पर रोगी को अधिक मालूम होता है और वह स्पर्श उस को इतना असह्य (न सहने में यहां पर हम को अनेक अद्भुत बातें भी लिखनी थीं कि जिन से गृहस्थों और भोले लोगों का सब भ्रम दूर हो जाता तथा पदार्थविज्ञानसम्बन्धी कुछ चमत्कार भी उन्हें विदित हो जाते परन्तु ग्रन्थ के अधिक बढ़ जाने के भय से उन सब बातों को यहां नहीं लिख सकते हैं, किन्तु सूचना मात्र प्रसंगवशात् यहां पर बतला देना आवश्यक (ज़रूरी) था, इस लिये कछ बतला दिया गया, उन सब अद्भुत बातों का वर्णन अन्यत्र प्रसंगानुसार किया जाकर पाठकों की सेवा में उपस्थित किया जावेगा, आशा है कि समझदार पुरुष हमारे इतने ही लेख से तत्त्व का विचार कर मिथ्या भ्रम ( झूठे वहम ) को दूर कर धूर्त और पाखण्डी लोगों के पंजे में न फँस कर लाभ उठावेंगे।
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