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जैनसम्प्रदायशिक्षा । __४४-पुनर्नवादि चूर्ण-पुनर्नवा, गिलोय, सोंठ, सतावर, विधायरा, कचूर
और गोरखमुण्डी, इन का चूर्ण बना कर कांजी से पीना चाहिये, इस के पीने से आमाशय ( होजरी) की वादी दूर होती है तथा गर्म जल के साथ लेने से आमवात और गृध्रसी रोग दूर हो जाते हैं।
४५-घी, सेल, गुड़, सिरका और सोंठ, इन पांचों को मिला कर पीने से तत्काल देह की तृप्ति होती है तथा कमर की पीड़ा दूर होती है, निराम (आमरहित) कमर की पीड़ा को दूर करनेवाला इस के समान दूसरा कोई प्रयोग नहीं है। ___ ४६-सिरस के बक्कल को गाय के मूत्र में भिगा देना चाहिये, सात दिन के बाद निकाल कर हींग, बच, सोंफ और सेंधा निमक, इन को पीस कर पुटपाक करके उस का सेवन करना चाहिये, इस का सेवन करने से दारुण (घोर ) कमर की पीड़ा, आमवृद्धि, मेदोवृद्धि के सब रोग तथा वादी के सब रोग दूर हो जाते हैं। __४७-अमृतादि चूर्ण-गिलोय, सोंठ, गोखुरू, गोरखमुंडी और वरना की छाल, इन के चूर्ण को दही के जल अथवा कांजी के साथ लेने से सामवात (आम के सहित वादी) का शीघ्र ही नाश होता है।
४८-अलम्बुषादि चूर्ण-अलम्बुषा (लजालू का भेद), गोखुरू, त्रिफला, सोंठ और गिलोय, ये सब क्रम से अधिक भाग लेकर चूर्ण करे तथा इन सब के बराबर निसोत का चूर्ण मिलावे, इस में से एक तोले चूर्ण को छाछ का जल, छाछ, कांजी, अथवा गर्म जल के साथ लेने से आमवात, सूजन के सहित वातरक्त, त्रिक; जानु; ऊरु और सन्धियों की पीड़ा, ज्वर और अरुचि, ये सब रोग मिट जाते हैं तथा यह अलम्बुषादि चूर्ण सर्वरोगों का नाशक है।
४९-अलम्बुषा, गोखुरू, वरना की जड़, गिलोय और सोंठ, इन सब ओषधियों को समान भाग लेकर इन का चूर्ण करे, इस में से एक तोले चूर्ण को कांजी के साथ लेने से आमवात की पीड़ा अति शीघ्र दूर हो जाती है अर्थात् आमवात की वृद्धि में यह चूर्ण अमृत के समान गुणकारी (फायदेमन्द) है।
५०-दूसरा अलम्वुषादि चूर्ण-अलम्बुषा, गोखुरू, गिलोय, विधायरा, पीपल, निसोत, नागरमोथा, वरना की छाछ, सांठे, त्रिफला और सोंठ, इन सब
१-इस को मुण्डी, महामुण्डी तथा छोटी बड़ी गोरखमुण्डी भी कहते हैं, यह प्रसर-जाति की रूखड़ी होती है, यह काली ज़मीन तथा जलप्राय स्थान में बहुत होती है ।। २-यह रोग वातजन्य है ॥ ३-अर्थात् आमरहित ( विना आम की ) यानी केवल वादी की पीड़ा शीघ्र ही इस प्रयोग से दूर हो जाती है ॥ ४-वरना को संस्कृत में वरुण तथा वरण भी कहते हैं ।। ५-क्रम से अधिक भाग लेकर अर्थात् अलम्बुषा एक भाग, गोखुरू दो भाग, त्रिफला तीन भाग, सोंठ चार भाग और गिलोय पाँच भाग लेकर । ६- जानु अर्थात् घुटने ।। ७-सांठ अर्थात् लाल पुनर्नवा, इस ( पुनर्नवा ) के बहुत से भेद हैं, जैसे-श्वेत पनर्नवाइसे हिन्दी में विषखपरा कहते हैं तथा नीली पनर्नबा. इसे हिन्दी में नीली सांठ कहते हैं, इत्यादि ॥ ८-त्रिफला अर्थात् हरड़, बहेड़ा और आँवला, ये तीनों समान भाग वा क्रम से अधिक भाग ।
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