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जैनसम्प्रदायशिक्षा |
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१८- महारास्नादि क्वाथ — रास्ता, अंडे की जड़, अडूसा, धमासा, कचूर, देवदारु, खिरेटी, नागरमोथा, सोंठ, अतीस, हरड़, गोखुरू, अमलतास, कलौंजी, धनियां, पुनर्नवा, असगन्ध, गिलोय, पीपल, विधायरा, शतावर, बच, पियावांसा, चव्य, तथा दोनों ( छोटी बड़ी ) कटेरी, ये सब समान भाग लेवे परन्तु रास्ता की मात्रा तिगुनी लेवे, इन सब का अष्टावशेष ( जल का आठवां हिस्सा शेष रखकर ) काढ़ा बना कर तथा उस में सोंठ का चूर्ण डाल कर पीवे, इस के सेवन से वादी के सब दोष, सामरोगे, पक्षाघात, अर्दित, कम्प, कुज, सन्धिगत वात, जानु जंघा तथा हाड़ों की पीड़ा, गृध्रसी, हनुग्रह, ऊरुस्तम्भ, वातरक्त, विश्वाची, कोटुशीर्षक, हृदय के रोग, बवासीर, योनि और शुक्र के रोग तथा स्त्री के बंध्यापन के रोग, ये सब नष्ट होते हैं, यह क्वाथ स्त्रियों को गर्भप्रदान करने में भी अद्वितीय (अपूर्व ) है ।
१९- रास्नापञ्चक- रास्ना, गिलोय, अंड की जड़, देवदारु और सोंठ, ये सब औषध मिलाकर एक तोला लेवे, इस का पावभर जल में क्वाथ चढ़ावे, जब एक छटांक जल शेष रहे तब इसे उतार कर छान कर पीवे, इस के पीने से सन्धिगत वात, अस्थिगत वात, जाति वा तथा सर्वागगत आमवात, सब रोग शीघ्र ही दूर हो जाते हैं ।
२० - रास्नासप्तक - रास्ना, गिलोय, अमलतास, देवदारु, गोखुरू, अंड की जड़ और पुनर्नवा, ये सब मिला कर एक तोला लेर्केर पावभर जल में क्वाथ करे, जब छटांक भर जल शेष रहे तब उतार कर तथा उस में छः मासे सोंठ का चूर्ण डालकर पीवे, इस काथ के पीने से जंघा, ऊरु, पसवाड़ा, त्रिक और पीठ की पीड़ा शीघ्र ही दूर हो जाती है।
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२१- इस रोग में - दशमूल के क्वाथ में पीपल के चूर्ण को डालकर पीना चाहिये ।
२२- हरड़ और सोंठ, अथवा गिलोय और सोंठ का सेवन करने से लाभ होता है ।
२३- चित्रक, इन्द्रजौं, पाठ, कुटकी, अतीस और हरड़, इन का चूर्ण गर्म जल के साथ पीने से आमाशय से उठा हुआ वातरोग शान्त हो जाता है ।
२४ - अजमोद, काली मिर्च, पीपल, बायविडंग, देवदारु, चित्रक, सतावर, सेंधा नमक और पीपरामूल, ये सब प्रत्येक चार २ तोले, सोंठ दश पल, विधायरे के बीज दश पल और हरड़ पांच पल, इन सब को मिलाकर चूर्ण कर लेना
१- अण्ड अर्थात् एरण्ड वा अण्डी का वृक्ष ॥ रोग ॥ ३ - पक्षाघात आदि सब वातरोग हैं ॥। तोला लेकर ॥
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२- सामरोग अर्थात् आम ( आँव) के सहित ४- अर्थात् मिश्रित सातों पदार्थों की मात्रा एक
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