________________
५५८
जैनसम्प्रदायशिक्षा।
आगन्तुज छर्दि में-यथायोग्य दोपों के अनुसार अपने २ लक्षण होते हैं। कृमि की छर्दि में-शूल तथा खाली उलटी होती है, एवं इस रोग में कृमि रोग और हृदय रोग के समान सब लक्षण होते हैं।
छर्दि के उपद्रव-खांसी, श्वास, ज्वर, हिचकी, प्यास, अचेतनता (बेहोशी), हृदय रोग तथा नेत्रों के सामने अंधेरे का आना, ये सब उपद्रव प्रायः छर्दि रोग में होते हैं।
कारण-अत्यन्त पतले, चिकने, अप्रिय तथा खार से युक्त पदार्थों का सेवन करने से, कुसमय भोजन करने से, अधिक भोजन करने से, बीभत्स पदार्थों के देखने से गरिष्ठ (भारी) पदार्थों के खाने से, श्रम, भय, उद्वेग, अजीर्ण, और कृमिदोष से गर्भिणी स्त्री की गर्भ सम्बन्धी पीड़ा से तथा वारंवार भोजन करने से तीनों दोष कुपित हो कर बल पूर्वक मुख का आच्छादन कर लेते हैं तथा अंगों में पीड़ा को उत्पन्न कर मुख के द्वारा पेट में पहुंचे हुए भोजन को बाहर निकालते हैं।
चिकित्सा--आमाशय ( होजरी) के उत्क्लेश के होने से छर्दि होती है, इस लिये इस रोग में प्रथम लंघन करना चाहिये ।
२-यदि इस रोग में दोषों की प्रबलता हो तो कफपित्तनाशक विरेचन (जुलाब) लेना चाहिये ।
३-वातजन्य छर्दि रोग में जल को दूध में मिला कर औंटाना चाहिये, जब जल जल कर केवल दूध शेष रह जाये तब उसे पीना चाहिये।
४-भूमिआँवले के यूष में घी और सेंधे निमक को मिला कर पीना चाहिये। ५-गिलोय, त्रिफला, नीम की छाल और पटोलपत्र के क्वाथ में शहद मिला कर पीने से छर्दि दूर हो जाती है।
६-छोटी हरड़ के चूर्ण में शहद को मिला कर चाटने से दस्त के द्वारा दोषों के निकल जाने से शीघ्र ही छर्दि मिट जाती है।
७-बायविडंग, त्रिफला और सोंठ, इन के चूर्ण को शहद में मिला कर चाटना चाहिये।
८-बायविडंग, केवटी, मोथा और सोंठ, इन के चूर्ण का सेवन करने से कफ की छर्दि मिट जाती है।
९-आँवले, खील और मिश्री, ये सब एक पल लेकर तथा पीस कर पाव भर जल में छान लेना चाहिये, पीछे उस में एक पल शहद को डाल कर पुनः कपड़े
१-जो कि पहिले पृथक् २ लिख चुके हैं ॥ २-खाली उलटी होती है अर्थात् उबकियाँ आकर रह जाती हैं ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com