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चतुर्थ अध्याय ।
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पुरुष की अपेक्षा बड़ा होता है, इसी लिये इस रोग में स्त्रीको कोपेवा तथा चन्दन का तेल इत्यादि दवा की विशेष आवश्यकता नहीं होती है किन्तु उस के लिये तो इतना ही करना काफी होता है कि उस को प्रथम त्रिफले का जुलाब तीन दिन तक देना चाहिये, फिर महीना वा बीस दिन तक साधारण खुराक देनी चाहिये तथा पिचकारी लगाना चाहिये, क्योंकि स्त्री के लिये पिचकारी की चिकित्सा विशेष फायदेमन्द होती है।
देशी वैद्य इस रोग में स्त्री को प्रायः बैग भी दिया करते हैं।
सूचना-इस वर्तमान समय में चारों तरफ दृष्टि फैला कर देखने से विदित होता है कि इस दुष्ट सुजाख रोग से वर्तमान में कोई ही पुण्यवान् पुरुष बचे हैं नहीं तो प्रायः यह रोग सब ही को थोड़ा बहुत कष्ट पहुंचाता है।
इस रोग के होने से भी गर्मी के रोग के समान खून में विकार (विगाड़) हो जाता है, इसलिये खून को साफ करनेवाली दवा का महीने वा बीस दिन तक अवश्य सेवन करना चाहिये। ___ यह रोग भी गर्मी के समान बारसा में उतरता है अर्थात् यह रोग यदि माता पिता के हो तो पुत्र के भी हो जाता है। ___ इस दुष्ट रोग से अनेक ( कई ) दूसरे भी भयंकर रोग उत्पन्न हो जाते हैं परन्तु उन सब का अधिक वर्णन यहां पर ग्रन्थ के बढ़जाने के भय से नहीं कर सकते हैं।
बहुत से अज्ञान (मूर्ख) लोग इस रोग के विद्यमान ( मौजूद ) होने पर भी स्त्रीसंगम करते हैं जिस से उन को तथा उन के साथ संगम करने वाली स्त्रियों को बड़ी भारी हानि पहुँचती है, इस लिये इस रोग के समय में स्त्रीसंगम कदापि (कभी) नहीं करना चाहिये। . बहुत से लोग इस रोग के महाकष्ट को भोग कर के भी पुनः उसी मार्ग पर चलते हैं, यह उन की परम अज्ञानता (बड़ी मूर्खता) है और उन के समान मूर्ख कोई नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से बे मानो अपने ही हाथ से अपने पैर में कुल्हाड़ी मारते हैं और उन के इस व्यवहार से परिणाम में जो उन को हानि पहुँचती है उसे वे ही जान सकते हैं, इस लिये इस रोग के होने के समय में कदापि स्त्रीसंगम नहीं करना चाहिये ॥
कास ( खांसी) रोग का वर्णन । कारण-नाक और मुख में धूल तथा धुआँ के जाने से, प्रतिदिन रूक्ष (रूखे ) अन्न और अधिक व्यायाम के सेवन से, आहार के कुपथ्य से, मल और मूत्र के रोकने से तथा छींक के रोकने से प्राणवायु अत्यन्त दुष्ट होकर तथा दुष्ट उदान वायु से मिल कर कास (खाँसी) को उत्पन्न करती है ।
४७ जै० सं०
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