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जैनसम्प्रदायशिक्षा। एक यह बात भी अवश्य ध्यान में रखनी चाहिये कि-उपदंश वाले बच्चे को माता के दूध के पिलाने के बदले ( एवज़ में ) गाय आदि का दूध पिला कर पालना अच्छा है।
पथ्यापथ्य-इस रोग में दूध, भात, मिश्री, मूंग, गेहूँ और सेंधानिमक, इत्यादि साधारण खुराक का खाना तथा शुद्ध (साफ) वायु का सेवन करना पथ्य है और गर्म पदार्थ, मद्य (दारू), बहुत मिर्च, तेल, गुड़, खटाई, धूप में फिरना, अधिक परिश्रम करना तथा मैथुन इत्यादि अपथ्य हैं।
विशेष सूचना-वर्तमान समय में गर्मी देवी की प्रसादी से बचने वाले थोड़े ही पुण्यवान् पुरुष दृष्टिगत होते हैं (देखे जाते हैं ), इस के सिवाय प्रायः यह भी देखा जाता है कि-बहुत से लोग इस रोग के होने पर इसे छिपाये रखते हैं तथा बहुत से भाग्यवानों (धनवानों) के लड़के माता पिता के लिहाज़ वा डर से भी इस रोग को छिपाये रखते हैं परन्तु यह तो निश्चय ही है कि थोड़े ही दिनों में उन को मैदान में अवश्य आना ही पड़ता है (रोग को प्रकट करना ही पड़ता है वा यों समझिये कि रोग प्रकट हो ही जाता है) इस लिये इस रोगको कभी छिपाना नहीं चाहिये, क्योंकि इस रोग को छिपा कर रखने से बहुत हानि पहुँचती है तथा यह रोग कभी छिपा भी नहीं रह सकता है, इस लिये इस का छिपाना बिलकुल व्यर्थ है, अतः (इस लिये) इस रोग के होते ही उस को छिपाना नहीं चाहिये किन्तु उस का उचित उपाय करना चाहिये। __ ज्यों ही यह रोग उत्पन्न हो त्यों ही सब से प्रथम त्रिफले (हरड़ बहेड़ा और
आँवला) के जुलाब का लेना प्रारंभ कर देना चाहिये तथा यह जुलाब तीन दिन तक लेना चाहिये, जुलाब के दिनों में खिचड़ी के सिवाय और कुछ भी नहीं खाना चाहिये, हाँ रँधती (पकती) हुई खिचड़ी में थोडासा घृत (घी) डाल सकते हैं।
जुलाब के ले चुकने के पीछे ऊपर लिखे अनुसार इलाज करना चाहिये, अथवा किसी अच्छे वैद्य वा.डाक्टर से इलाज कराना चाहिये, परन्तु मूर्ख वैद्यों से रसकपूर तथा हींगलू आदि दवा कभी नहीं लेनी चाहिये।
१-इन के सिवाय-मूत्र के वेग को रोकना, दिन में सोना, भारी अन्न का खाना तथा छाछ का पीना, ये कार्य भी इस रोग से युक्त पुरुष के लिये अपथ्य अर्थात् हानिकारक हैं ।। २-अर्थात् इस रोग से बचे हुए थोड़े ही पुरुष देखे जाते है ।। ३-अर्थात् लज्जा के कारण प्रकट नहीं करते हैं ।। ४-क्योंकि शीघ्र ही प्रकट हो कर इस की चिकित्सा हो जाना अच्छा है, पीछे यह कष्टसाध्य हो जाता है ॥ ५-क्योंकि मूर्ख वैद्य अपनी अज्ञानता से रसकपूर और हींगलू आदि दवा तो रोगी को दे देते हैं परन्तु न तो वे उन के देने के विधान को भी जानते हैं और न अनुपान तथा पथ्य आदि को समझते हैं, इस लिये रोगी को उक्त दवाओं को मूख वेद्य से लेने में परिणाम में बड़ी भारी हानि पहुँचती है, अतः उक्त दवाओं को मुर्ख वैद्यों से भूलकर भी नहीं लेना चाहिये।
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