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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
और वे सदा नीरोग रहते हैं, यदि रात्रि में भोजन करना हानिकारक (नुकसान करनेवाला) है तो उन को रोग क्यों नहीं होता है" इत्यादि, सो यह उन की अज्ञानता है तथा उन का यह कहना कि-"अंग्रेजों को रोग क्यों नहीं होता है" सो बिलकुल व्यर्थ है, क्योंकि-रात्रि में भोजन करने से उन को भी रोग तो अवश्य होता है परंतु वह रोग थोड़ा होता है और थोड़े ही समयतक ठहरता है, क्योंकि प्रथम तो उन लोगों के रहने के मकान ही ऐसे होते हैं कि क्षुद्र जीव प्रथम तो उन के मकानों में प्रवेश ही नही कर सकते हैं, दूसरे वे लोग नियत समय पर बहुत थोड़ा २ खाते हैं तथा खाने के पश्चात् विकार न करनेवाले किन्तु हाज़मा करनेवाले पदार्थों का सेवन करते हैं कि जिस से उन को अजीर्ण कभी नहीं होता है, तीसरे-जब कभी उनको रोग होता है तब शीघ्र ही वे विद्वान् डाक्टरों से उस की चिकित्सा करा लेते हैं कि जिस से रोग उन के शरीर में स्थान नहीं करने पाता है, चौथे-वे नियमानुसार शारीरिक (शरीर का) और मानसिक (मनका) परिश्रम करते हैं कि जिस से उन का शरीर रोग के योग्य ही नहीं होता है, पांचवें-नियमानुसार सर्व कार्यों के करने तथा निकृष्ट (बुरे) कार्यों से बचने से उन को आधि ( मानसिक रोग) और व्याधि (शारीरिक रोग) सताती ही नहीं है, इत्यादि अनेक बातों से रोग उन के पास तक नहीं आता है, परन्तु सब जानते हैं कि-हिन्दुस्थानी जनों के कोई भी व्यवहार उन के समान नहीं है, फिर हिन्दुस्थानी जन निषिद्ध (शास्त्र आदि से मना किया हुआ) कार्य कर के दुःखरूपी फल से कैसे बचसकते हैं ? अर्थात् हिन्दुस्थानी जन शरीर को बाधा पहुँचानेवाले कार्यों को करके उन (अंग्रेजों) के समान तनदुरुस्ती को कभी नहीं पा सकते हैं। __ वर्तमान में यह भी देखा जाता है कि बहुत से आर्य श्रीमान् लोग अंग्रेजों के समान व्यवहार करने में अपना पैर रखते हैं परन्तु उस का ठीक निर्वाह न होने से परिणाम ( नतीजा) यह होता है कि वे विना मौत आधी ही उम्र में मरते हैं, क्योंकि प्रथम तो अंग्रेजों का सब व्यवहार उन से यथोचित बन नहीं आता है, दूसरे-इस देश की तासीर और जल वायु अंग्रेज़ों के देश से अलग है, इस लिये हिन्दुस्थानियों को उचित है कि-उन के अनुकरण ( नकल करने ) को छोड़ कर अपनी प्राचीन प्रथा (रिवाज़ ) पर ही चलते रहें अर्थात् प्रजापति भगवान् श्रीनाभिकुलचन्द्र ने जो दिनचर्या (दिन का व्यवहार), रात्रिचर्या (रात्रि का व्यवहार ) तथा ऋतुचर्या (ऋतु का व्यवहार ) अपने पुत्र हारीत को बतलाई थी
१-हिन्दुस्थानी जनों के व्यवहार उन के समान ही नहीं हैं, यह बात नहिं है किन्तु हिन्दुस्थानियों के सब व्यवहार ठीक उन (अंग्रेजों ) के विरुद्ध ( विपरीत ) हैं, फिर ये ( हिन्दुस्थानी) लोग उन के समान आरोग्यता के सुख को कैसे पा सकते हैं ॥ २-इस का अनुभव पाठकों को वर्तमान में अच्छे प्रकार से हो ही रहा है, इस लिये इस विषय के विवरण करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
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