________________
चतुर्थ अध्याय ।
४८९ इलाज करना चाहिये, देखो! इस बात को प्रायः सब ही समझ सकते हैं कि शरीर का बन्धेज (बन्धान) खुराक पर निर्भर है परन्तु वह खुराक ही जब अच्छे प्रकार से नहीं पचती है तब वह (खुराक) शरीर को दृढ़ करने के बदले उलटा शिथिल ( ढीला ) कर देती है, तथा खुराक के ठीक तौर से न पचने का कारण प्रायः अजीर्ण ही होता है', इस लिये अजीर्ण के उत्पश्च होते ही उसे दूर करना चाहिये।
कारण-अजीर्ण होने का कारण किसी से छिपा नहीं है अर्थात् इस के कारण को प्रायः सब ही जानते हैं कि अपनी पाचनशक्ति से अधिक और अयोग्य खुराक के खाने से अजीर्ण होता है, अर्थात् एक समय में अधिक खा लेना, कच्चे भोजन को खाना, बेपरिमाण (विना अन्दाज अर्थात् गलेतक) खाना, पहिले खाये हुए भोजन के पचने के पहिले ही फिर खाना, ठीक रीति से चबाये विना ही भोजन को खाना तथा खान पान के पदार्थों का मिथ्यायोग करना, ये सब अजीर्ण होने के कारण हैं।
इन के सिवाय-बहुत से व्यसन भी अजीर्ण के कारण होते हैं, जैसे मद्य (दारू), मंग (भाँग), गांजा और तमाखू का सेवन, आलस्य (सुस्ती), वीर्य का अधिक खर्च करना, शरीर को और मन को अत्यन्त परिश्रम देना तथा चिन्ता का करना, इत्यादि अनेक कारणों से अजीर्णरूपी शत्रु शरीररूपी किले में प्रवेश कर अपनी जड़ को दृढ़ कर लेता है और रोगोत्पत्तिरूपी अनेक उपद्रवों को करता है।
लक्षण-अजीर्ण यद्यपि एक छोटासा रोग गिना जाता है परन्तु वास्तव में यह सब से बड़ा रोग है, क्योंकि यही (अजीर्ण ही) सब रोगों की जड़ है, यह रोग शरीर में स्थित होकर (ठहर कर ) प्रायः दो क्रियाओं को करता है अर्थात् या तो दस्त लाता है अथवा दस्त को बन्द करता है, इन (दोनों) में से पूर्व क्रिया में दस्त होकर न पचा हुआ अन्न का भाग निकल जाता है, यदि वह न निकले तो प्रायः अधिक खराबी करता है परन्तु दूसरी क्रिया में दस्त की कब्जी होकर पेट फूल जाता है, खट्टी डकार आती है, जी मिचलाता है, उबकी आती है, वमन होता है, जीभपर सफेद थर (मैल) जमजाती है, छाती और आमाशय (होजरी) में दाह होता है तथा शिर में दर्द होता है, इन के सिवाय कभी २ पेट में चूंक चलती है और नींद में अनेक प्रकार के दुःखम (बुरे सुपने) होते हैं, इत्यादि अनेक चिह्न अजीर्णरोग में मालूम पड़ते हैं।
१-अजीर्ण शब्द का अर्थ ही यह है कि खाये हुए भोजन का न पचना ॥ २-क्योंकि उत्पन्न होते ही इस का इलाज कर लेने से यह शीघ्र ही निवृत्त हो जाता है अर्थात् शरीर में इस की जड़ नहीं जमने पाती है ।। ३-पाचनशक्ति से अधिक खुराक के खाने से अर्थात् आधसेर की पाचनशक्ति होनेपर सेरभर खुराक के खा लेने से तथा अयोग्य खुराक के खाने से अर्थात् प्रकृति के विरुद्ध खुराक के खाने से अजीर्ण रोग उत्पन्न होता है ।। ४-लिखने पढ़ने और सोचने आदि के द्वारा मन को भी अधिक परिश्रम देने से अजीर्ण रोग होता है, क्योंकि-दिल, दिमाग और अग्न्याशय, इन तीनों का बड़ा घनिष्ठ सम्बध है ।।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com