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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
फुनसी के समान छोटा और गोल दाना होता है, पहिले ललाट (मस्तक) तथा मुख पर दाना निकलता है और पीछे सब शरीर पर फैलता है।
जिस प्रकार शीतला में दानों के दिखाई देने के पीछे ज्वर मन्द पड़ जाता है उस प्रकार इस में नहीं होता है तथा शीतला के समान दाने के परिमाण के अनुसार इस में ज्वर का वेग भी नहीं होता है, ओरी सातवे दिन मुरझाने लगती है, ज्वर कम हो जाता है, चमड़ी की ऊपर की खोल उतर कर खाज (खुजली) बहुत चलती है।
यह रोग यद्यपि शीतला के समान भयंकर नहीं है तो भी इस रोग में प्रायः अनेक समयों में छोटे बच्चों को हांफनी तथा फेफसे का बरम (शोथ) हो जाता है, उस दशामें यह रोग भी भयंकर हो जाता है अर्थात् उस समय में तन्द्रादि सन्निपात हो जाता है, ऐसे समय में इस का खूब सावधानी से इलाज करना चाहिये, नहीं तो पूरी हानि पहुंचती है। __ यह भी स्मरण रखना चाहिये कि सख्त ओरी के दाने कुछ गहरे जामुनी रंग के होते हैं।
चिकित्सा-इस रोग में चिकित्सा प्रायः शीतला के अनुसार ही करनी चाहिये, क्योंकि इस की मुख्यतया चिकित्सा कुछ भी नहीं है, हां इस में भी यह अवश्य होना चाहिये कि रोगी को हवा में तथा ठंढ में नहीं रखना चाहिये।
खुराक-भात दाल और दलिया आदि हलकी खुराक देनी चाहिये, तथा दाख और धनिये को भिगा कर उस का पानी पिलाना चाहिये।
इस रोगी को मासे भर सोंठ को जल में रगड़ कर (घिस कर) सात दिन तक दोनों समय (प्रातःकाल और सायंकाल) विना गर्म किये हुए ही पिलाना चाहिये।
___अछपड़ा (चीनक पाक्स ) का वर्णन । यह रोग छोटे बच्चों को होता है तथा यह बहुत साधारण रोग है, इस रोग में एक दिन कुछ २ ज्वर आकर दूसरे दिन छाती पीठ तथा कन्धे पर छोठे २ लाल २ दाने उत्पन्न होते हैं, दिन भर में अनुमान दो २ दाने बड़े हो जाते हैं तथा उन में पानी भर जाता है, इस लिये वे दाने मोती के दाने के समान हो जाते हैं तथा ये दाने भी लगभग शीतला के दानों के समान होते हैं परन्तु बहुत थोड़े और दूर २ होते हैं। .
१-अर्थात् इस में दानों के दिखाई देने के पीछे भी जर मन्द नहिं पड़ता है ॥ २-अर्थात् शीतला में तो जैसे अधिक परिमाण के दाने होते हैं वैसा ही ज्वर का वेग अधिक होता है परन्तु इस में वह बात नहीं होती है ॥ ३-क्योंकि रोगी को हवा अथवा ठंढ़ में रखने से शरीर के जकड़ने की और सन्धियो में पीड़ा उत्पन्न होने की आशंका रहती है ॥ ४-दाख और धनिये को भिगा कर उस का पानी पिलाने से अग्नि का दीपन, भोजन का पाचन तथा अन्न पर इच्छा होती है ॥ ५-वास्तव में यह भी शीतला का ही एक भेद है ॥
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