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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
धनिया और देवदारु, इन का काथ देना चाहिये, यह क्वाथ पाचन है इस लिये विषमज्वर तथा सब प्रकार के ज्वरों में इस क्वाथ को पहिले देना चाहिये।
७-मुस्तादि क्वाथ-मोथ, भूरीगणी, गिलोय, सोंठ और आँवला, इन पांचों की उकाली को शीतल कर शहद तथा पीपल का चूर्ण डाल पीना चाहिये।
८-ज्वरांकुश-शुद्ध पारा, गन्धक, वत्सनाग, सोंठ, मिर्च और पीपल, इन छःओं पदार्थों का एक एक भाग तथा शुद्ध किये हुए धतूरे के बीज दो भाग लेने चाहियें, इन में से प्रथम पारे और गन्धक की कजली कर शेष चारों पदार्थों को कपड़छान कर तथा सब को मिला कर नींबू के रस में खूब खरल कर दो दो रती की गोलियां बनानी चाहिये, इन में से एक वा दो गोलियों को पानी में वा अदरख के रस में अथवा सोंठ के पानी में ज्वर आने तथा ठंढ लगने से आध घण्टे अथवा घण्टे भर पहिले लेना चाहिये, इस से ज्वर का आना तथा ठंढ का लगना बिलकुल बन्द हो जाता है, ठंढ के ज्वर में ये गोलियां क्विनाइन से भी अधिक फायदेमन्द हैं।
फुटकर चिकित्सा-९-चौथिया तथा तेजरा के ज्वर में अगस्त के पत्तों का रस अथवा उस के सूखे पत्तों को पीस तथा कपड़छान कर रोगी को सुंघाना चाहिये तथा पुराने घी में हींग को पीस कर सुघाना चाहिये।
१०-इन के सिवाय-सब ही विषम ज्वरों में ये (नीचे लिखे) उपाय हितकारी हैं-काली मिर्च तथा तुलसी के पत्तों को घोट कर पीना चाहिये, अथवाकाली जीरी तथा गुड़ में थोड़ी सी काली मिर्च को डाल कर खाना चाहिये, अथवा-सोंठ जीरा और गुड़, इन को गर्म पानी में अथवा पुराने शहद में अथवा गाढ़ी छाछ मैं पीना चाहिये, इस के पीने से ठंढ का ज्वर उतर जाता है, अथवानीम की भीतरी छाल, गिलोय तथा चिरायते के पत्ते, इन तीनों में से किसी एक वस्तु को रात को भिगा कर प्रातःकाल कपड़े से छान कर तथा उस जल में मिश्री मिला कर और थोड़ी सी काली मिर्च डाल कर पीना चाहिये, इस के पीने से ठंढ के ज्वर में बहुत फायदा होता है।
१-पहिले इसी काथ के देने से दोपों का पाचन होकर उन का वेग मन्द हो जाता है तथा उन की प्रबलता मिट जाती है और प्रबलता के मिट जाने से पीछे दी हुई साधारण भी ओषधि शीघ्र ही तथा विशेप फायदा करती है ॥ २-भूरीगणी अर्थात् कटेरी ।। ३-आते हुए. वर के रोकने के लिये तथा ठंड लगने को दूर करने के लिये यह (ज्वराङ्कश) बहुत उत्तम ओषधि है ।। ४-खरल कर अर्थात् खरल में घोंट कर ॥ ५-क्योंकि ये गोलियां ठंढ़ को मिटा कर तथा शरीर में उष्णता का सञ्चार कर बुखार को मिटाती हैं और शरीर में शक्ति को भी उत्पन्न करती हैं । ६-इस के अगस्त्य, वंगसेन, मुनिपुष्प और मुनिद्रुम, ये संस्कृत नाम हैं, हिन्दी में इसे अगस्त अगस्तिया तथा पिया भी कहते हैं, बंगाली में-वक, मराठी में-हदगा, गुजराती में-अगथियों तथा अंग्रेजी में ग्राण्डी फलोरा कहते है, इस का वृक्ष लम्बा होता है और इस पर पतेवाली बेलें अधिक चढ़ती हैं, इस के पत्ते इमली के समान छोटे २ होते हैं, फूल सफेद, पीला,और लाल, काला होता है अर्थात् इस का फूल चार प्रकार का होता है तथा वह (फूल) केमूला के फूल के समान बांका (टेढ़ा) और उत्तम होता है, इस वृक्ष की लम्बी पतली और चपटी फलियां होती हैं, इस के पत्ते शीतल, रूक्ष, वातकर्ता और कडुए होते हैं, इस के सेवन से पित्त, कफ, चौथिया ज्वर और सरेकमा दूर हो जाता है ।।
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