________________
चतुर्थ अध्याय ।
४१९ नाइटिक एसिड डालना चाहिये, दोनों के मिलने से यदि पहिले हरा फिर जामुनी और पीछे लाल रंग हो जावे तो समझ लेना चाहिये कि मूत्र में पित्त है। २-यूरिक एसिड-यूरिक एसिड आदि मूत्र के यद्यपि स्वाभाविक तत्त्व हैं
परन्तु वे भी जब अधिक जाते हों तो उन की परीक्षा इस प्रकार से करनी चाहिये कि-मूत्र को एक रकेबी में डाल कर गर्म करे, पीछे उस में नाइ. टिक एसिड की थोड़ी सी बूंद डाल देवे, यदि उस में पासे बँध जावें तो जान लेना चाहिये कि मूत्र में यूरिया अधिक है, तथा मूत्र को रकेबी में डाल कर उस में नाइट्रिक एसिड डाला जावे पीछे उसे तपाने से यदि उस में पीले रंग का पदार्थ हो जावे तो जानलेना चाहिये कि मूत्र में यूरिक
एसिड जाता है। ३-आल्व्यु मीन-आलव्युमीन एक पौष्टिक तत्त्व है, इसलिये जब वह मूत्र के साथ में जाने लगता है तब शरीर कमजोर हो जाता है, इस के जाने की परीक्षा इस रीति से करनी चाहिये कि मूत्र की परीक्षा करने की एक नली ( ट्युब) होती है, उस में दो तीन रुपये भर मूत्र को लेना चाहिये, पीछे उस नली के नीचे मोमबत्ती को जला कर उस से मूत्र को गर्म करना चाहिये, जब मूत्र उबलने लगे तब उस के अन्दर शोरेके तेजाब की थोड़ी सी बूंदें डाल देनी चाहियें, इस की बूंदों से मूत्र बादलों की तरह धुंधला हो जावेगा और वह धुंधला हुआ मूत्र जब ठहर जावेगा तब उस में यदि आलूव्युमीन होगा तो नीचे बैठ जावेगा और आँखों से दीखने लगेगा परन्तु मूत्र के गर्म करने से अथवा गर्म कर उस में शोरे के तेज़ाब की बूंदें डालने से यदि वह मूत्र धुंधला न होवे अथवा धुंधला होकर धुंधलापन मिट जावे तो समझ लेना चाहिये कि मूत्र में आलूव्युमीन नहीं जाता है, इस परीक्षा से गर्म किये हुए और नाइट्रिक एसिड मिले हुए मूत्र में जमा हुआ पदार्थ क्षार होगा तो वह फिर भी मूत्र में मिल जायगा
और अलूव्युमीन होगा तो बैसे का वैसा ही रहेगा। ४-युगर अर्थात् शक्कर-जब मूत्र में अधिक वा कम शक्कर जाती है तब
उस रोग को मधुप्रमेह का भयङ्कर रोग है, इस रोग कहते कहते में मूत्र बहुत मीठा सफेद तथा पानी के समान होता है और उस में शहद के समान गन्ध आती है, इस रोग में रसायनिक रीति से परीक्षा करने से शक्कर का होना ठीक रीति से जाना जा सकता है, इस की परीक्षा की
यह रीति है कि-यदि शक्कर की शङ्का हो तो फिर मूत्र को गर्म कर छान ___१-डाक्टर लोग तो इस के नीचे स्पिरीट ( मद्य ) का दीपक जलाते हैं परन्तु आर्य लोगों को तो मोमबत्ती ही जलानी चाहिये ।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com