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चतुर्थ अध्याय । मूत्र में भी घट बढ़ होती है, ऋतुके अनुसार भी मूत्र के होने में फर्क पड़ता है, जैसे देखो ! शीत काल की अपेक्षा उष्णकाल में मूत्र थोड़ा होता है।
मूत्राशय का एक रोग होता है जिस को मूत्राशय का जलन्दर कहते हैं, यह रोग मूत्राशय में विकार होने से आल्ल्युमेन नामक एक आवश्यक तत्त्व के मूत्रमार्गद्वारा खून में से निकल जाने से होता है, मूत्र में आल्ब्युमेन है वा नहीं इस बात की जांच करने से इस रोग की परीक्षा हो सकती है, इसी तरह मूत्र सम्बन्धी एक दूसरा रोग मधुप्रमेह (मीठा मूत्र) नामक है, इस रोगमें मूत्रमार्ग से मीठे का अधिक भाग मूत्र में जाता है और वह मीठे का भाग मूत्र को साधारणतया आंख से देखने से यद्यपि नहीं मालूम होता है (कि इसमें मीठा है वा नहीं) तथापि अच्छी तरह परीक्षा करने से तो वह मीठा भाग जान ही लिया जाता है, इस के जानने की एक साधारण रीति यह भी है कि मीठे मूत्र पर हज़ारों चीटियां लग जाती हैं।
मूत्र में खार भी जुदा २ होता है और जब वह परिमाण से अधिक वा कम जाता है तथा खटास ( एसिड) का भाग जब अधिक जाता है तो उस से भी अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, मूत्र में जाननेवाले इन पदार्थों की जब अच्छी तरह परीक्षा हो जाती है तब रोगों की भी परीक्षा सहज में ही हो सकती है।
मूत्रमें जानेवाले पदार्थों की परीक्षा-मूत्रकी परीक्षा अनेक प्रकार से की जाती है अर्थात् कुछ बातें तो मूत्र को आंख से देखने से ही मालूम होती हैं, कुछ चीजें रासायनिक प्रयोग के द्वारा देखने से मालूम होती हैं और कुछ पदार्थ सूक्ष्मदर्शक यन्त्र के द्वारा देखने से मालूम पड़ते हैं, इन तीनों प्रकारों से परीक्षा का कुछ विषय यहां लिखा जाता है।
-आंखो से देखने से मूत्र के जुदे २ रंग की पहिचान से जुदे २ रोगों का अनुमान कर सकते हैं, नीरोग पुरुष का मूत्र पानी के समान साफ और कुछ पीलास पर ( पीलेपन से युक्त) होता है, परन्तु मूत्र के साथ जब खून का भाग जाता है तब मूत्र लाल अथवा काला दीखता है, यह भी स्मरण रखना चाहिये कि कई एक दवाओं के खाने से भी मूत्र का रंग बदल जाता है, ऐसी दशा में मूत्रपरीक्षाद्वारा रोग का निश्चय नहीं करलेना चाहिये, यदि मूत्रको थोड़ी देरतक रखने से उस के नीचे किसी प्रकार का जमाव हो जावे तो समझ लेना चाहिये कि-खार, खून, पीप तथा चर्वी आदि कोई पदार्थ मूत्र के साथ जाता है, मूत्र के साथ जब आलव्युमीन और शक्कर जाता है तो उस की परीक्षा आंखों के देखने से नहीं होती है इस लिये उस का निश्चय करना हो तो दूसरी रीति से करना चाहिये, इसी प्रकार यद्यपि मूत्र के साथ थोड़ा बहुत खार तो मिला हुआ होता ही है तो भी जब वह परिमाण से अधिक जाता है तब मूत्र को थोड़ी देरतक
१-इसे अंग्रेजी में वाइट्स डिजीज़ कहते हैं ।
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