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चतुर्थ अध्याय ।
४०७ भी होता है कि-ऊपर से तो चमड़ी जलती हुई तथा बुखार सा मालूम
देता है परन्तु अन्दर बुखार नहीं होता है। ३-ठंढी चमड़ी-बहुत से रोगों में शरीर की चमड़ी ठंढी पड़ जाती है,
जैसे-बुखार के उतर जाने के बाद निर्बलता ( नाताकती) में, दूसरी बीमारियों से उत्पन्न हुई निर्बलता में, हैजे में तथा बहुत से पुराने रोगों में चमड़ी ठंढी पड़ जाती है, जब कभी किसी सख्त बीमारी में शरीर ठंढा
पड़ जावे तो पूरी जोखम (खतरा) समझनी चाहिये। ४-सूखी चमड़ी-चमड़ी के छेदों में से सदा पसीना निकलता रहता है
उस से चमड़ी नरम रहती है परन्तु जब कईएक रोगों में पसीना निकलना बंद हो जाता है तब चमड़ी सूखी और खरखरी हो जाती है, बुखार के प्रारम्भ में पसीना निकलना बन्द हो जाता है इस लिये बुखारवाले की
तथा वादी के रोगवाले की चमड़ी सूखी होती है। ५-भीगी चमड़ी-आवश्यकता से अधिक पसीना आने से चमड़ी भीगी
रहती है, इस के सिवाय कई एक रोगों में भी चमड़ी ठंढी और भीगी रहती है और ऐसे रोगों में रोगी को पूरा डर रहता है, जैसे-सन्धिवात (गठिया) में चमड़ी गर्म और भीगी रहती है तथा हैज़े में ठंढी और भीगी रहती है, निर्बलतामें बहुत ठंढा और भीगा अंग जोखम को जाहिर करता है, यदि कभी रातको पसीना हो, चमड़ी भीगी रहे और निर्बलता (नाताकती) बढ़ती जावे तो क्षयके चिन्ह समझकर जल्दी ही सावधान
हो जाना चाहिये। थर्मामेटर-शरीर में कितनी गर्मी है, इस बात का ठीक माप थर्मामेटर से हो सकता है, थर्मामेटर काच की नली में नीचे पारे से भराहुआ गोल पपोटा (काच का गोल बल्व) होता है, इस पारेवाले बल्व को मुँह में जीभ के नीचे वा बगल में पांच मिनटतक रख कर पीछे बाहर निकाल कर देखते हैं, उस के अन्दर का पारा शरीर की गर्मी से ऊपर चढ़ता है तथा शर्दी से नीचे उतरता है, अच्छे तनदुरुस्त आदमी के शरीर की गर्मी साधारणतया ९८ से १०० डिग्री के बीच में रहती है, बहुतों के शरीर में मध्यम गर्मी ९८ से ९९ होती है और बाहर की गर्मी अथवा परिश्रम से उस में कुछ २ बढ़ोतरी (वृद्धि) होती है तब पारा १०० तक चढ़ता है, नींद में और सम्पूर्ण शान्ति के समयों में एकाध डिग्री गर्मी कम होती है, रोग में शरीर की गर्मी विशेष चढ़ाव और उतार करती है और शरीर की स्वाभाविक गर्मी से पारा अधिक उतर जाता है वा चढ़ जाता है, सादे बुखार में वह पारा १०१ से १०२ तक चढ़ता है, सख्त बुखार में १०४ तक चढ़ता है और अधिक भयंकर बुखारमें १०५ से लेकर आखिरकार १०६६ तक चढ़ता है, शरीर के किसी मर्मस्थान में शोथ (सूजन) और दाह होता है तब
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