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________________ ४०४ जैनसम्प्रदायशिक्षा | चाहते हैं, परन्तु ऐसे भोले तथा नाड़ीपरीक्षापर ही परम श्रद्धा रखनेवाले जब कीन्हीं धूर्त चालाक और पाखण्डी वैद्यों के पास जाते हैं तो वे ( वैद्य ) नाड़ी देखकर बड़ा आडम्बर रचकर दो बातें वायु की दो बातें पित्त की तथा दो बातें कफ की कह कर और पांच पच्चीस बातों की गप्पें इधर उधर की हकालते हैं, उस समय उनकी बातों में से थोड़ी बहुत बातें रोगी के बीतेहुये अहवालों से मिल ही जाती हैं तब वे भोले अज्ञान तथा अत्यन्त श्रद्धा रखनेवाले बेचारे रोगीजन उन ठगों से अत्यन्त ठगाते हैं और मन में यह जानते हैं कि- संसार भर में इन के जोड़े का कोई हकीम नहीं है, बस इस प्रकार वे विद्वान् वैद्यों और डाक्ट रोंको छोड़कर ढोंगी तथा धूर्त वैद्यों के जाल में फँस जाते हैं । प्रिय पाठकगण ! ऐसे धूर्त वैद्यों से बचो ! यदि कोई वैद्य तुम्हारे सामने ऐसा anus करे कि मैं नाड़ी को देखकर रोग को बतला सकता हूँ तो उस की परीक्षा पहिले तुम ही कर डालो, बस उस का घमण्ड उतर जावेगा, उस की परीक्षा सहज में ही इस प्रकार हो सकती है कि-पांच सात आदमी इकट्ठे हो जाओ, उन में से आधे मनुष्य जीमलो ( भोजन करलो ) तथा आधे भूखे रहो, फिर घमण्डी वैद्य को अपने मकान पर बुलाओ चाहे तुम ही उस के मकान पर जाओ और उस से कहो कि-हम लोगों में जीमे हुए कितने हैं और भूखे कितने हैं ? इस बात को आप नाड़ी देखकर बताइये, बस इस विषय में वह कुछ भी न कह सकेगा और तुम को उस की परीक्षा हो जावेगी अर्थात् तुम को यह विदित हो जायेगा कि जब यह नाड़ी को देखकर एक मोटी सी भी इस बात को नहीं बता सका तो फिर रोग की सूक्ष्म बातों को क्या बतला सकता है । बड़े ही शोक का विषय है कि वर्तमान समय में वैद्यों की योग्यता और अयोग्यता तथा उन की परीक्षा के विषय में कुछ भी ध्यान नहीं दिया जाता है, गरीबों और साधारण लोगों की तो क्या कहें ? आजकल के अज्ञान भाग्यवान् लोग भी विद्वान् और मूर्ख वैद्य की परीक्षा करनेवाले बहुत ही थोड़े ( आटे में नमक के समान ) दिखलाई देते हैं, इस लिये सर्व साधारण को उचित है कि - नाड़ी परीक्षा के यथार्थतत्त्व को समझें और उसी के अनुसार बर्ताव करें, मूर्ख वैद्यों पर से श्रद्धा को हटावें तथा उन के मिथ्याजाल में न फँसें, नाड़ी देखने का जो कायदा हमने आर्यवैद्यक तथा डाक्टरी मत से लिखा है उसे वाचकवृन्द इस बात का निश्चय करलें कि रोग पेट में है, शिर में है, अच्छी तरह समझें तथा नाक में है, वा कान में १- पांच पच्चीस अर्थात् वहुतसी ॥ २ - हकालते हैं अर्थात् हांकते हैं ॥ ३- अहवालों अर्थात् हकीकतों यानी हल्लों ॥ ४ - जोड़े का अर्थात् बराबरी का ॥ ५ - यद्यपि एक विद्वान् अनुभवी वैद्य जिस पुरुषकी नाड़ी पहिले भी देखी हो उस पुरुषकी नाड़ी को देखकर उक्त बात को अच्छे प्रकार से बतला सकता क्योंकि पहिले लिख चुके हैं कि भोजन करने के बाद नाड़ी का वेग बढ़ता है इत्यादि, परन्तु धूर्त और मूर्ख वैद्य को इन बातों की खबर कहाँ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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