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चतुर्थ अध्याय ।
३९३ दोष के और प्रकृति के आपस में कुछ सम्बन्ध है या नहीं? यह एक बहुत ही आवश्यक प्रश्न है, इस का उत्तर यही है कि-दोष का प्रकृति के साथ अत्यन्त घनिष्ठ सम्बन्ध है अर्थात् जिस मनुष्य की प्रकृति में जो दोष प्रधान होता है वही दोष उस मनुष्य की प्रकृति कहा जाता है और बहुधा उस मनुष्य के उसी दोष के कोप से रोग होता है, जैसे-यदि कोई रोगी पुरुष वायुप्रधानप्रकृति का है तो उस के ज्वर आदि जो कोई रोग होगा वह (रोग) वायुरूप दोष के साथ विशेष सम्बन्ध रखनेवाला होगा, इसी प्रकार पित्त और कफ आदि के विषय में भी समझना चाहिये।
अब स्याद्वादमत के अनुसार इस विषय में दूसरा पक्ष दिखलाते हैं-रोग सदा शरीर की मूल प्रकृति के ही अनुसार होता हो यही एकान्त निश्चय नहीं है, क्योंकि अनेक समयों में ऐसा भी होता है कि-रोगी की मूलप्रकृति पित्त की होती है और रोग का कारण वायु होता है, रोगी की प्रकृति वायु की होती है और रोग का कारण पित्त होता है, इस प्रकार बहुत से रोग ऐसे हैं जो कि प्रकृति से विलकुल सम्बन्ध नहीं रखते हैं तो भी रोगी के रोग की परीक्षा करने में और उस का इलाज करने में रोगी की प्रकृति का ज्ञान होना बहुत ही उपयोगी है।
स्पर्शपरीक्षा। __ शरीर के किसी भाग पर हाथ से अथवा दूसरे यन्त्र (औज़ार) से स्पर्श कर यह दर्याफ्त करना कि इस के शरीर में गर्मी की, शर्दी की, खून की तथा श्वासोच्वास की क्रिया कितने अन्दाज़न है, इसी को स्पर्शपरीक्षा मानी है, इस परीक्षा में नाड़ीपरीक्षा, त्वचापरीक्षा, थर्मामेटर (शरीर की गर्मी मापने की नली) और स्टेथोस्कोप (छाती में लगाकर भीतरी विकार को दर्याफ्त करने की नली) का समावेश होता है। __ स्पर्शपरीक्षा का सब से पहिला तथा अच्छा साधन तो हाथ ही है, क्योंकि रोग को परीक्षा में हाथ बहुत सहायता देता है, देखो! शरीर गर्म है, वा ठंढा है, सुहाला है, या खरखरा है, शरीर के अन्दर का अमुक भाग नरम है, पोला है, वा कठिन है, वा अन्दर के भाग में गांठ है, अथवा शोथ है, इत्यादि सब बातें हाथ के द्वारा स्पर्श करने से शीघ्र ही मालूम होजाती हैं, नाड़ीपरीक्षा भी हाथ से ही होती है जो कि रोग की परीक्षा का उत्तम साधन है, क्योंकि नाड़ी के देखने से शरीर में कितनी गर्मी वा शर्दी है तथा कौनसा दोष कितने अंश में कुपित है इत्यादि बातों का ज्ञान शीघ्र ही हो जा सकता है, देखो! अनुभवी वैद्य और हकीम अपने अनुभव और अभ्यास से शरीर की गर्मी को केवल नाड़ी पर अंगु
१-सत्य पूछो तो दोष काही नाम तो प्रकृति है ।।
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