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चतुर्थ अध्याय ।
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का बहुत कुछ निर्णय हो सकता है, इस परीक्षा में बहुत से दर्शनीय दूसरे भी विषय आ जाते हैं जैसे-रूप अर्थात् चेहरे का देखना, त्वचा ( चमड़ी ), नेत्र, जीभ, मल (दस्त ) और मूत्र आदि के रंग को देखना तथा उन के दूसरे चिह्नों को देखना, इत्यादि । इन सब के दर्शन से भी रोगपरीक्षा हो सकती है, प्रश्नपरीक्षा में यह होता है कि-रोगी की हकीकत को सुन कर तथा पूछ कर आवश्यक बातों का ज्ञान होकर रोग का ज्ञान हो जाता है, अब इन चारों परीक्षाओं का विशेष वर्णन किया जाता है:
प्रकृतिपरीक्षा ।
आर्यवैद्यक शास्त्र के मुख्यतया वर्णनीय विषय वात पित्त और कफ, ये तीन ही हैं और इन्हीं पर वैद्यक शास्त्र का आधार है, नाड़ीपरीक्षा में भी ये ही तीनों उपयोगी हैं, इस लिये इन तीनों विषयों का विचार पहिले किया जाता है:
नाड़ी आदि की परीक्षा के विषय पर आने से पहिले यह जानना परम आव श्यक है कि प्रत्येक दोषवाली प्रकृति का क्या २ स्वरूप होता है, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य को अपनी २ प्रकृति ( तासीर) से वाकिफ होना बहुत ही जरूरी है, देखो ! हमारी प्रकृति शान्त है अथवा तामसी ( तमोगुण से युक्त ) है इस बात को तो प्रायः सब ही मनुष्य आप भी जानते हैं तथा उन के सहवासी ( साथ में रहनेवाले ) इष्ट मित्र भी जानते हैं, परन्तु वैद्यकशास्त्र के नियम के अनुसार हमारी प्रकृति वात की है, वा पित्त की है, वा कफ की है, वा रक्त की है, अथवा मिश्र (मिलीहुई ) है, इस बात को बहुत थोड़े ही पुरुष जानते हैं, इस के न जानने से खान पान के पदार्थों के सामान्य गुण और दोषों का ज्ञान होने पर भी उस से कुछ लाभ नहीं उठा सकते हैं, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य जब अपनी प्रकृति को जान लेता है तब इस के बाद खान पान के पदार्थों के सामान्य-गुण दोष को जान कर तथा अपनी प्रकृति के अनुसार उन का उपयोग कर अपनी आरोग्यता को कायम रख सकता हैं तथा रोग हो जाने पर उन का इलाज भी स्वयं ही कर सकता है ।
प्रकृति की परीक्षा में इतनी विशेषता है कि इस का ज्ञान होने से दूसरी भी बहुत सी परीक्षायें सामान्यतया जानी जा सकती हैं, देखो ! यह सब ही जानते हैं कि सब आदमियों में वात पित्त कफ और खून अवश्य होते हैं परन्तु
( वात आदि) सब के समान नहीं होते हैं अर्थात् किसी के शरीर में एक प्रधान होता है शेष गौण ( अप्रधान ) होते हैं, किसी के शरीर में दो प्रधान होते हैं शेष गौण होते हैं, अब इस में यह जान लेना चाहिये कि जिस मनुष्य का जो
१ - इस का यहां पर उचित समझ कर 'प्रश्नपरीक्षा' नाम रख दिया हैं | २ वात पित्त और कफ, इन्हीं तीनों का नाम दोष है, क्योंकि ये ही विकृत होकर शरीर को दूषित करते हैं ।
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