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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
इन सब बातों के उपरान्त यह भी आवश्यक है कि अपने देश के वस्त्रों को सब कामों में लाना योग्य है, जिस से यहां के शिल्प में उन्नति हो और यहां का रुपया भी बाहर को न जावे, देखो ! हमारे भारत देश में भी बड़े २ उत्तम और दृढ़ वस्त्र बनते हैं, यदि सम्पूर्ण देशभाइयों की इस ओर दृष्टि हो जावे तो फिर देखिये भारत में कैसा धन बढ़ता है, जो सर्व सुखों की जड़ है।
७-विहार-विहार शब्द से इस स्थानपर स्त्रीपुरुषों के खानगी (प्राइवेः) व्यापार (भोग) का मुख्यतया समावेश समझना चाहिये, यद्यपि विहार के दूसरे भी अनेक विषय हैं परन्तु यहां पर तो ऊपर कहे हुए विषय का ही सम्बन्ध है, स्त्रीविहारमें इन बातों का विचार रखना अतिआवश्यक है कि वयोविचार, रूपगुणविचार, कालविचार, शारीरिक स्थिति, मानसिक स्थिति, पवित्रता और एकपत्नीव्रत, अब इन के विषय में संक्षेप से क्रम से वर्णन किया जाता है:
१-वयोविचार-इस विषय में मुख्य बात यही है कि-लगभग समान अवस्थावाले स्त्रीपुरुषों का सम्बन्ध होना चाहिये, अथवा लड़की से लड़के की अवस्था ड्योढ़ी होनी चाहिये, बालविवाह की कुचाल बंद होनी चाहिये, जतबक यह कुचाल बंद न हो तबतक समझदार मातापिता को अपनी पुत्रियों को १६ वर्ष की अवस्था के होने के पहिले श्वशुरगृह (सासरे) को नहीं भेजना चाहिये।
समान अवस्था का न होना स्त्रीपुरुष के विराग और अप्रीति का कारण होता है और विराग ही इस संसार के व्यापार में शारीरिक अनीति “कापोरियल रि म्युलेरिटी" को जन्म देता है।
२० से २५ वर्षतक का लड़का और १६ वर्ष की लड़की संसारधर्म में प्रवृत्त होने के लिये योग्य गिने जाते हैं, इस से जितनी अवस्था कम हो उतना ही शारीरिक नीति "कार्पोरियल रिग्युलेरिटी" का भंग होना समझना चाहिये।
संसारधर्म के लिये पुरुष के साथ योग होने में लड़की की १२ वर्ष की अवस्था बहुत न्यून है, यद्यपि हानि विशेष का विचार कर सर्कार ने अपने नियम में १२ वर्ष की अवस्था नियत की है परन्तु उस सीमा को क्रम २ से बढ़ा कर १६ वर्षतक लाकर नियत करानी चाहिये ।
२-रूपगुणविचार-रूप तथा गुण की असमानता भी अवस्था की असमानता के समान खराबी करती है, क्योंकि इन की समानता के विना शारीरिक धर्म "कार्पोरियल लॉ" के पालन में रस (आनन्द) नहीं उपजता है तथा उस की शारीरिक नीति "कार्पोरियल रिग्युलेरिटी' के अर्थात् शारीरिक कर्तव्यों के उल्लङ्घन का कारण उत्पन्न होता है। __ अवस्था, रूप और गुण की योग्यता और समानता का विचार किये विना जो माता पिता अपने सन्तानों के बन्ध न लगा देते हैं उस से किसी न किसी प्रकार १-विहार अर्थात् स्त्री विहार को अंग्रेजी में “कोहेविस्टेशन" कहते हैं ।।
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