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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
का ध्यान है, एवं धर्म के पालन करने की, नाना आपत्तियों से बचने की तथा देश और जाति को आनन्द मंगल में देखने की अभिलाषा है तो सदा अफीम, चण्डू, गांजा, चरस, धतूरा और भांग आदि निकृष्ट पदार्थों से बचिये, क्योंकि ये पदार्थ परिणाम में बहुत ही हानि करते हैं, इसीलिये धर्मशास्त्रों में इन के त्याग के लिये अनेकशः आज्ञा दी गई है, यद्यपि इस पदार्थों के सेवन करने वालोंकी दुर्दशा को बुद्धिमानोंने देखा ही होगा तथापि सको साधारण के जानने के लिये इन पदार्थों के सेवन से उत्पन्न होनेवाली हानियों क संक्षेप से वर्णन करते हैं:
अफीम-अफीम के खाने से बुद्धि कम हो जाती है तथा मगज़ में खुश्र्क बढ़ जाती है, मनुष्य न्यूनबल तथा सुस्त हो जाता है, मुख का प्रकाश कम हो जाता है, मुखपर स्याही आ जाती है, मांस सूख जाता है तथा खाल मुरझा जात है, वीर्यका बल कम हो जाता है, इस का सेवन करनेवाले पुरुष घंटोंतक पीनंकः में पड़े रहते हैं, उन को रात्रि में नींद नहीं आती है और प्रातःकाल में दिन चढ़ने तक सोते हैं जिस से आयु कम हो जाता है, दो पहर को शौच के लिये जाकर वहां (शौचस्थान में ) घण्टों तक बैठे रहते हैं, समय पर यदि अफीम खाने को न मिले तो आंखों में जलन पड़ती है तथा हाथ पैर ऐटने लगते हैं, जाड़े के दिन में उनको पानी से ऐसा डर लगता है कि वे स्नानतक नहीं करते हैं इस से उन के शरीर में दुर्गंध आने लगती है, उन का रंग पीला पड़ जाता है तथा खांसी आदि अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं।
चण्ड-इस के नशे से भी ऊपर लिखी हुई सब हानियां होती हैं, हां इस में इतनी विशेषता और भी है कि इस के पीने से हृदय में मैल जम जाता है जिस से हृदयसम्बन्धी अनेक महाभयंकर रोग उत्पन्न हो जाते हैं तथा हृदय निर्बल. हो जाता है।
गांजा, चरस, धतूरा और भांग-इन चारों पदार्थों के भी सेवन से खांसी और दमा आदि अनेक हृदयरोग हो जाते हैं, मगज़ में विक्षिप्तता को स्थान मिलता है, विचारशक्ति, स्मरणशक्ति और बुद्धि का नाश होता है, इन का सेवन करनेवाला पुरुष सभ्य मण्डली में बैठने योग्य नहीं रहता है तथा अनेक रोगों के उत्पन्न होने से इन का सेवन करनेवालों को आधी उम्र में ही मरना पड़ता है।
तमाखू-मान्यवरो ! वैद्यक ग्रन्थों के देखने से यह स्पष्ट प्रकट होता है कि तमाखू संखिया से भी अधिक नशेदार और हानिकारक पदार्थ है अर्थात् किसी वनस्पति में इस के समान वा इस से अधिक नशा नहीं है।
१-पीनक में पड़ने पर उन लोगों को यह भी मुध बुध नहीं रहती है कि हम कहां हैं, संसार किधर है और संसार में क्या हो रहा है ? ॥
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