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जैनसम्प्रदायशिक्षा । डाक्टरों ने और सभ्यों ने वनस्पति का खाना पसन्द किया है, तथा प्रत्येक स्थान में वह सभा (बेजिटेरियन सुसाइटी) मांस भक्षण के दोपों और वनस्पतिक गुणों का उपदेश कर रही है।
७ शिकार खेलना-सातवां महा व्यसन शिकार खेलना है, इस के विषय में धर्मशास्त्रों में लिखा है कि इस के फन्दे में पड़ कर अनेक राजे महाराजों ने नरकादि दुःखों को पाया है, वर्तमान समय में बहुत से कुलीन राजे महाराजे की इस दुर्व्यसन में संलग्न हो रहे हैं, यह बड़े ही शोक की बात है, देखो ! राजाओं का मुख्य धर्म तो यह है कि सब प्राणियों की रक्षा करें अर्थात् यदि शत्रु भी हो और शरण में आ जावे तो उस को न मारें, अव विचारना चाहिये कि वेच रे मृग आदि जीव तृण खाकर अपना जीवन विताते हैं उन अनाथ और निरपर ध पशुओं पर शस्त्र का चलाना और उन को मरणजन्य असह्य दुःख का देना केन सी बहादुरी का काम है ? अलवत्ता प्राचीन समयके आर्य राजा लोग सिंह की शिकार किया करते थे जैसा कि कल्पसूत्र की टीका में वर्णन है कि-बिट वासुदेव जंगल में गया और वहां सिंह को देखकर मन में विचारने लगा कि न तो यह रथपर चढ़ा हुआ है, न इस के पास शस्त्र है और न शरीर पर कवच ही है, इस लिये मुझको भी उचित है कि मैं भी रथ से उतर कर शस्य छोड़ कर
और कवच को उतार कर इस के साथ युद्ध कर इसे जीतुं , इस प्रकार मन में विचार कर रथ से उतर पड़ा और शस्त्र तथा कवच का त्याग कर सिंह को दूर से ललकारा, जब सिंह नजदीक आया तब दोनों हाथों से उस के दोनों ओठों को पकड़ कर जीर्ण वस्त्र की तरह चीर कर ज़मीन पर गिरा दिया परन्तु इतना क ने पर भी सिंह का जीव शरीर से न निकला तब राजा के सारथि ने सिंह से कहा कि-हे सिंह ! जैसे तू मृगराजा है उसी प्रकार तुझ को मारनेवाला यह नरराज है, यह कोई साधारण पुरुष नहीं है, इस लिये अब तू अपनी वीरता के सास को छोड़ दे, सारथि के इस वचन को सुन कर सिंह के प्राण चले गये।
१-वासुदेव के बल का परिमाण इस प्रकार समझना चाहिये कि बारह आदमियों का वल एक वैल में होता है, दश वैलों का बल एक घोड़े में होता है, बारह घोड़ों का बल । क मैं से में हं ता है, पांच सौ भैसों का बल एक हाथी में होता है, पांच सौ हाथियों का बल एक मिह में ता है, दो सौ सिंहों का बल एक अष्टापद (जन्तुविशेष) में होता है, दो सी अष्टापों का बलक बलदेव में होता है, दो बलदेवों का बल एक वासुदेव में होता है, नी वासुदेवों का बलक चक्रवर्ती में होता है, दश लाख चक्रवत्तियों का बल एक देवता में होता है, एक करोड देवत ओं का क्ल एक इन्द्र में होता है और तीन काल के इन्द्रों का बल एक अरिहन्त में होता है, ५ न्तु वर्तमान समय में से बलधान नहीं हैं, जो अपने बल का बनण्ड करते हैं वह उन की मूल है, पूर्व समय में आदमिओं में और पशुओं में जैसी ताकत होती थी वह अब नहीं होती है, पूर्व काल के राजे भी ऐसे बलवान् होते थे कि यदि तमाम प्रजा भी बदल जावे तो अकेले ही उस को वश में ला सकते थे देखो ! संसार में शक्ति भी एक बड़ी अपूर्व वस्तु है जो कि पूर्वपुष्प से ही प्राप्त होती है ।।
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