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चतुर्थ अध्याय । परन्तु महान् शोक का विषय है कि वर्तमान में आर्य लोगों की बुद्धि और विवेक प्रायः सदाचार से रहित होने के कारण नष्टप्राय होगये हैं, देखो! भाग्यवान् (श्रीमान् ) पुरुष तो प्रायः अपने पास लुच्चे, बदमास, महाशौकीन, विषयी, चुगुलखोर और नीच जातिवाले पुरुषों को रखते हैं, वे न तो अच्छे २ पुस्तकों को देखते हैं और न अच्छे जनों की संगति ही करते हैं तब कहिये उन के हृदय में सदाचार और सद्विचार कहां से उत्पन्न हो सकता है! सिर्फ इसी कारण से वर्तमान में यथायोग्य आचार सद्विचार और सत्संगति बिलकुल ही उठ जाती है, इन लोगों के सुधरने का अब केवल यही उपाय है कि ये लोग कुसंगको छोड़ कर नीति और धर्मशास्त्र आदि ग्रन्थों को देखें, तत्संग करे, भ्रष्टाचारों से बचें और सदाचार को उभयलोक का सुखद समझें, देखो ! भ्रष्टाचारों की मुख्य जड़ कुव्यसनादि हैं, क्योंकि उन्हीं से बुद्धि भ्रष्ट होकर सदाचार नष्ट हो जाता है परन्तु बड़े ही खेद का विषय है-इस ज़माने में कुव्यसनों के फंदे से विरले ही बचे हुए होंगे, इस का कारण सिर्फ यही है कि हमारे देश के बहुत से भ्राता व्यसनों के यथार्थ स्वरूप से तथा उनसे परिणाम में होनेवाली हानि से बिलकुल ही अनभिज्ञ हैं अतः व्यसनों के विषय में यहां संक्षेप से लिखते हैं__ जैन सूत्रों में सात व्यसेन कहे हैं जो कि इस भव और परभव दोनों को बिगाड़ देते हैं, उन का विवरण संक्षेप से इस प्रकार है:
१ जुआ-यह सब से प्रथम नम्बर में है अर्थात् यह सातों व्यसनों का राजा है, इस के व्यसन से बहुत लोग फकीर हो चुके हैं और हो रहे हैं।
२ चोरी-दूसरा व्यसन चोरी है, इस व्यसनवाले का कोई भी विश्वास नहीं करता है और उस को जेलखाना अवश्य देखना पड़ता है जिस (जेलखाने) को इस भव का नरक कहने में कोई हर्ज नहीं है ।
३ परस्त्रीगमन-तीसरा व्यसन परस्त्रीगमन है, यह भी महाभयानक व्यसन है, देखो ! इसी व्यसन से रावण जैसे प्रतापी शूर वीर राजा का भी सत्यानाश हो गया तो दूसरों की तो क्या गिनती है, इस समय भी जो लोग इस व्यसन में संलग्न हैं उन को कैसी २ कठिन तकलीफें उठानी पड़ती हैं जिन को वे ही लोग जान सकते हैं।
१-जो चाणत्रय नीतिसार दोहावली इसी ग्रन्थ में दी गई है उस को ध्यानपूर्वक देखना चाहिये और पहिले जो ऋतसम्बंधी तथा नैत्यिक नियमों के पालन की विधि लिख चके हैं उस के अनसा वर्त्तना चाहिये ॥ २-सात महाव्यसनों का वर्णन यहां पर प्रसंगवश पाठकों को इधर ध्यान देने के वास्ते ग्रन्थ बढ़ जाने के भय से बहुत ही संक्षेप से किया है, सुश गुणग्राही पुरुष इतने ही वर्णन से इन के दोषों को समझ जावेंगे, हम अपने मित्रों से यह भी अनुरोध किये विना नहीं रह सकते हैं कि-हे प्रियमित्रो यदि आप में कुसंग दोष आदि से कोई महाव्यसन पड़ गया हो तो आप उस को छोड़ने की अवश्य कोशिश करें, ऐसा करने से आप को उस का फल स्वयं ही प्राप्त हो जायगा।
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