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चतुर्थ अध्याय ।
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की बुद्धि का नाश मार कर उन के सर्वस्व का सत्यानाश कर दें और तिस पर भी उनके परम हितैषी कहलावें, हा शोक ! हा शोक ! ! हा शोकं ! ! !
१४ - भोजन करने के बाद मुख को पानी के कुल कर साफ कर लेना चाहिये तथा दाँतों की चिमटी आदि से दाँतों और मसूड़ों में से जूठन को बिलकुल निकाल डालना चाहिये, क्योंकि खुराक का अंश मसूड़ों में वा दाँतों की जड़ में रह जाने से मुख में दुर्गन्धि आने लगती है तथा दाँतों का और मुख का रोग भी उत्पन्न हो जाता है।
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१५ - भोजन करने के पीछे सौ कदम टहलना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से अन्न पचता और आयु की वृद्धि होती है, इस के पीले थोड़ी देर तक पलंग पर लेटना चाहिये, इस से अंग पुष्ट होता है, परन्तु लेटकर नींद नहीं लेनी चाहिये, क्योंकि नींद के लेने से रोग उत्पन्न होते हैं, इस विषय में यह भी स्मरण रहे कि प्रातःकाल को भोजन करने के पश्चात् पलंगपर बांये और दहिने करवट से लेटना चाहिये परन्तु नींद नहीं लेनी चाहिये तथा सायंकाल को भोजन करने के पश्चात् टहलना परम लाभदायक है 1
१६ - भोजन करने के पश्चात् बेञ्च, स्टूल, तिपाई और कुर्सी आदि पर बैठने, नींद लेने, आग के सम्मुख बैठने, धूप में चलने, दौड़ने, घोड़े वा ऊंट आदि की सवारी पर चढ़ने तथा कसरत करने आदि से नाना प्रकार के दोष उत्पन्न होते हैं, इसलिये भोजन के पश्चात् एक घण्टे वा इस से भी कुछ अधिक समयतक ऐसे काम नहीं करने चाहियें ।
१७- भोजन के पाचन के लिये किसी चूर्ण को खाना वा शर्बत आदि को पीना उचित नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से वैसा ही अभ्यास पड़ जाता है और वैसा अभ्यास पड़ जाने पर चूर्ण आदि के सेवन किये विना अन्न का पाचन ही नहीं होता है, कुछ समयतक ऐसा अभ्यास रहने से जठराग्नि की स्वाभाविक तेज़ी न रहने से आरोग्यता में अन्तर पड़ जाता है ।
१८ - भोजन के समय में अत्यंत पानी का पीना, विना पचे भोजन पर भोजन करना, विना भूख के खाना, भूख का मारना, आघसेर के स्थान में सेर भर खाना तथा अत्यंत न्यून खाना आदि कारणों से अजीर्ण तथा मन्दाग्नि आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं, इसलिये इन बातों से बचते रहना चाहिये ।
१ - हा भारत ! तेरे पवित्र यश में नाना प्रकार के धब्बे लग गये हैं, क्योंकि इस देश में बहुधा ऐसे मत चल गये हैं कि - जिन में गृहस्थ पुरुषों और स्त्रियों को गुरु का जूठा खाना भी धर्म का अंश माना गया है और बतलाया गया है और जिस से निरक्षर भट्टाचार्य गुरु घण्टल का जूटा परसाद (प्रसाद) वा जूटा पानी भी अमृत के समान मान कर बेचारे भोले स्त्री पुरुष पीते हैं, हे मित्रगण ! भला अब तो सोचो समझो और सावधान हो ! तुम इस अविद्याकी गाढ निद्रा में कबतक पड़े सोते रहोगे ? ॥
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