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चतुर्थ अध्याय।
२९९ ६-सामान्यतया थोड़े गर्म जल से स्नान करना प्रायः सब ही के अनुकूल आता है।
७-यदि गर्म पानी से स्नान करना हो तो जहां बाहर की हवा न लगे ऐसे बंद मकानमें कन्धों से स्नान करना उत्तम है, परन्तु इस बात का ठीक २ प्रबन्ध करना सामान्य जनों के लिये प्रायः असम्भवसा है, इस लिये साधारण पुरुषों को यही उचित है कि-सदा शीतल जल से ही स्नान करने का अभ्यास डालें।
-जहांतक हो सके मान के लिये ताज़ा जल लेना चाहिये क्योंकि ताजे जल से स्नान करने से बहुत लाभ होता है परन्तु वह ताज़ा जल भी स्वच्छ होना चाहिये ।
९-स्नान के विषय में यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिये कि तरुण तथा नीरोग पुरुषों को शीतल जल से तथा बुड्ढे दुर्बल और रोगी जनों को गुनगुने जल से स्नान करना चाहिये ।
१०-शरीर को पीठी उबटन वा साबुन लगा कर रगड़ २ के खूब धोना चाहिये पीछे स्नान करना चाहिये ।
११-स्नान करने के पश्चात् मोटे निर्मल कपड़े से शरीर को खूब पोंछना चाहिये कि जिस से सम्पूर्ण शरीर के किसी अंग में तरी न रहे ।
१२-गर्भिणी स्त्री को तेल लगाकर स्नान नहीं करना चाहिये।
१३-नेत्ररोग, मुखरोग, कर्णरोग, अतीसार, पीनस तथा ज्वर आदि रोगवालों को स्नान नहीं करना चाहिये ।
१४-स्नान करने से प्रथम अथवा प्रातःकाल में नेत्रों में ठंढे पानी के छींटे देकर धोना बहुत लाभदायक है।
१५-नान करने के बाद घंटे दो घण्टेतक द्रव्यभाव से ईश्वर की भक्ति को ध्यान लगाकर करना चाहिये, यदि अधिक न बन सके तो एक सामायिक को तो शास्त्रोक्त नियमानुसार गृहस्थों को अवश्य करना ही चाहिये, क्योंकि जो पुरुष इतना भी नहीं करता है वह गृहस्थाश्रम की पलिमें नहीं गिना जा सकता है अर्थात् वह गृहस्थ नहीं है किन्तु उसे इस (गृह स्थ) आश्रम से भी भ्रष्ट और पतित समझना चाहिये ॥
पैर धोना। पैरों के धोने से थकावट जाती रहती है, पैरों का मैल निकल जाने से स्वच्छता आ जाती है, नेत्रों को तरावट तथा मन को आनंद प्राप्त होता है, इस कारण जब कहीं से चलकर आया हो वा जब आवश्यकता हो तब पैरों को धोकर पोंछ डालना चाहिये, यदि सोते समय पैर धोकर शयन करे तो नींद अच्छे प्रकार से आजाती है।
१-आजकल बहुत से शौकीन लोग चर्बी से बने हुए खुशबूदार साबुन को लगा कर स्नान करते हैं परन्तु धर्म से भ्रष्ट होने की तरफ बिलकुल ख्याल नहीं करते हैं, यदि सावुन लगाकर नहाना हो तो उत्तम देशी साबुन लगाकर नहाना चाहिये, क्योंकि देशी सावुन में चर्वी नहीं होती है ॥ २-इस वस्त्र को अंगोछा कहते हैं, क्योंकि इस से अंग पोंछा जाता है, अंगोछा प्रायः गती का अच्छा होता है ।
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