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चतुर्थ अध्याय ।
२८५ प्रकृति तथा ऋतु के अनुकूल आहार विहार करना चाहिये, इस का संक्षेप से वर्णन इस प्रकार से है कि:
१-इस ऋतु में यथाशक्य पित्त को शान्त करने का उपाय करना चाहिये, पित्त को जीतने वा शान्त करने के मुख्य तीन उपाय हैं:
(A)-पित्त के शमन करनेवाले खान पान से और दवा से पित्त को दबाना चाहिये।
(B) वमन और विरेचन के द्वारा पित्त को निकाल डालना चाहिये। (C) फस्त खुलवा कर या जोंक लगवा कर खून को निकलवाना चाहिये।
२-वायु की प्रकृतिवाले को शरद् ऋतु में घी पीकर पित्त की शान्ति करनी चाहिये।
३-पित्त की प्रकृतिवाले को कडुए पदार्थ खानेपीने चाहियें, कहुए पदार्थों में नोम पर की गिलोय, नीम की भीतरी छाल, पित्तपापड़ा और चिरायता आदि उत्तम और गुणकारी पदार्थ हैं, इसलिये इन में से किसी एक चीज़ की फंकी ले लेना चाहिये, अथवा रात को भिगो कर प्रातःकाल उस का काथ कर ( उबाल कर) छान कर तथा ठंढ़ा कर मिश्री डालकर पीना चाहिये, इस दवा की मात्रा एक रुपये भर है, इस से ज्वर नहीं आता है और यदि ज्वर हो तो भी चला जाता है, क्योंकि इस दवा से पित्त की शान्ति हो जाती है।
४-पित्त की प्रकृतिवाले के लिये दूसरा इलाज यह भी है कि वह दूध और मिश्री के साथ चावलों को खावे, क्योंकि इस के खानेसे भी पित्त शान्त हो जाता है।
५-पित्त की प्रकृतिवाले को पित्तशामक जुलाब भी ले लेना चाहिये, उस से भी पित्त निकल कर शान्त हो जावेगा, वह जुलाब यह है कि-अमृतसर की हो अथवा छोटी हरड़े अथवा निसोतकी छाल, इन तीनों चीजों में से किसी ए चीज़ की फंकी बूरा मिला कर लेनी चाहिये तथा दाल भात या कोई पतला पदार्थ पथ्य में लेना चाहिये, ये सब साधारण दस्त लानेवाली चीजें हैं।
१-बहुत से प्रमादी लोग इस ऋतु में ज्वरादि रोगों से ग्रस्त होने पर भी अज्ञानता के कारण आहार विहार का नियम नहीं रखते हैं, बस इसी मूर्खता से वे अत्यन्त भुगत २ कर मरणान्त कष्ट पाते हैं ॥२-यदि वमन और विरेचन का सेवन किया जावे तो उसे पथ्य से करना उचित है, क्योंकि पुरुष का विरेचन (जुलाब) और स्त्री का जापा (प्रसूतिसमय ) समान होता है इसलिये पूर्ण वैद्य की सम्मति से अथवा आगे इसी ग्रन्थ में लिखी हुई विरेचन की विधि के अनुसार विरेचन लेना ठीक है, हां इतना अवश्य स्मरण रखना चाहिये कि-जब विरेचन लेना हो तब शरीर में धृत की मालिस करा के तथा घी पीकर तीन पांच या सात दिनतक पहिले वमन कर फिर तीन दिन ठहर कर पीछे विरेचन लेना चाहिये, घी पीने की मात्रा नित्य की दो तोले से लेकर चार तोलेतक की काफी है, इन सब बातों का वर्णन आगे किया जायगा ॥३-यह तीसरा उपाय तो विरले लोगों से ही भाग्ययोग से बन पड़ता हैं, क्योंकि पहिले जो दो उपाय हैं वे तो सहज और सब से हो सकने योग्य हैं परन्तु तीसरा उपाय कठिन अर्थात् सब से हो सकने योग्य नहीं है ॥
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