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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
ग्रीष्म ऋतु का पथ्यापथ्य। ग्रीष्म ऋतु में शरीर का कफ सूखने लगता है तथा उस कफ की खाली जगह में हवा भरने लगती है, इस ऋतु में सूर्य का ताप जैसा ज़मीन पर स्थित रस को खींच लेता है उसी प्रकार मनुष्यों के शरीर के भीतर के कफरूप प्रवाही (बहनेवाले ) पदार्थों का शोषण करता है इस लिये सावधानता के साथ गरीब और अमीर सब ही को अपनी २ शक्ति के अनुसार इस का उपाय अवश्य करना चाहिये, इस ऋतु में जितने गर्म पदार्थ हैं वे सब अपथ्य हैं यदि उन का उपयोग किया जाये तो शरीर को बड़ी हानि पहुँचती है, इस लिये इस ऋतु में जिन पदार्थों के सेवन से रस न घटने पावे अर्थात् जितना रस सूखे उतना ही फिर उत्पन्न हो जाये और वायु को जगह न मिलसके ऐसे पदार्थों का सेवन करना चाहिये, इस ऋतुमें मधुर रसवाले पदार्थों के सेवन की आवश्यकता है और ये स्वाभाविक नियम से इस ऋतु में प्रायः मिलते भी हैं जैसे--पके आम, पालसे, सन्तरे, नारंगी, इमली, नेचू जामुन और गुलाबजामुन आदि, इस लिये वाभा. विक नियम से आवश्यकतानुसार उत्पन्न हुए इन पदार्थों का सेवन इस स्तु में अवश्य करना चाहिये। __ मीटे, ठंढे, हलके और रसवाले पदार्थ इस ऋतु में अधिक खाने चाहि मे जिन से क्षीण होनेवाले रस की कभी पूरी हो जाये। ___ गेहूँ, चावल, मिश्री, दूध, शक्कर, जल झरा हुआ तथा मिश्री मिलाय हुआ दही और श्रीखंड आदि पदार्थ खाने चाहिये, ठंढा पानी पीना चाहिये. गुलाब तथा केवड़े के जल का उपयोग करना चाहिये, गुलाब, केवड़ा, खस और गोतिये का अतर सूंघना चाहिये। __ प्रातःकाल में सफेद और हलका सूती वस्त्र, दश से पांच बजे तक सूनी जीन वा गजी का कोई मोटा वस्त्र तथा पांच बजे के पश्चात् महीन वस्त्र पहरना चाहिये, बर्फ का जल पीना चाहिये, दिन में तहखाने में वा पटे हुए मकान में और रात को ओस में सोना उत्तम है। ___ आँवला, सेव और ईख का मुरब्बा भी इन दिनों में लाभकारी है, गदा का शीरा जिस में मिश्री और घी अच्छे प्रकार से डाला गया हो प्रातःकाल में खाने से बहुत लाभ पहुंचाता है और दिनभर प्यास नहीं सताती है । ___ ग्रीष्म ऋतु आम की तो फसल ही है सब का दिल चाहता है कि आप खावें परन्तु अकेला आम या उस का रस बहुत गर्मी करता है इस लिये आम के रस में घी दृध और काली मिर्च डाल कर सेवन करना चाहिये ऐसा करने से वह गर्मी नहीं करता है तथा शरीर को अपने रंग जैसा बना देता है।
१-श्रीखण्ड के गुण इसी अध्याय के पांचवें प्रकरण में कह चुके हैं, इस के बनाने की विधि भावप्रकाश आदि वैद्यक ग्रन्थों में अथवा पाकशान में देख लेनी चाहिये ॥२--परन्तु मन्दाग्निवाले, पुरुषों को इसे नहीं खाना चाहिये।
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