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चतुर्थ अध्याय ।
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हैं. इस से सिद्ध है कि-पहिले वह स्थान गर्म था किन्तु जब ऊपर अचानक बर्फ गिर कर जम गया तब उस की ठंढ से हाथी मर कर नीचे दब गये तथा बर्फ के गलकर पानी हो जाने पर वे उस में उतराने लगे, यदि यह मान भी लिया जावे कि-वहां सदा ही से बर्फ था तथा उसी में हाथी भी रहते थे तो यह प्रश्न उत्पन्न होगा कि बर्फ में हाथी क्या खाते थे ! क्योंकि बर्फ को तो खा ही नहीं सकते है और न बर्फ पर उन के खाने योग्य दूसरी कोई वस्तु ही हो सकती है ! इस का कुछ भी जवाब नहीं हो सकता है, इस से स्पष्ट है कि वह स्थान किसी समय में गर्म था तथा हाथियों के रहनेलायक वनरूप में था, अब भी मध्य हिन्दुस्तान के समशीतोष्ण देशों में भी सूर्य के समीप होने से अथवा दूर होने से न्यूनाधिक रूप से गर्मी और ठंढ पड़ती है, इसी लिये ऋतुपरिवर्तन से वर्ष के उत्तरायण और दक्षिणायन, ये दो अयन गिने जाते हैं, उत्तरायण उष्णकाल को तथा दक्षिणायन शीतकाल को कहते हैं।
पृथिवी के गोले का एक नाम नियत कर उस के बीच में पूर्व पश्चिमसम्बन्धिनी १-वर्फ में दबी हुई वस्तु बहुत समय तक बिगड़ती नहीं है, इस लिये कुछ समय तक तो वे हाथी उसमें जीते रहे, पीछे खाने को न मिलने से मर गये परन्तु बर्फ में दवे रहने से उन का शरीर नहां बिगड़ा और न सड़ा ॥२-सर्वज्ञ कथित जैनसिद्धान्त में पृथिवी का वर्णन इस प्रकार है किपृथिवी गोल थाल की शकल में है, उस के चारों तरफ असली दरियाव खाई के समान है, तथा जंक दीप बीच में है, जिम का विस्तार लाख योजन का है इत्यादि, परन्तु पश्चिमीय विद्वानोंने गेंद या नारंगी के समान पृथिवी की गोलाई मानी है, पृथिवी के विस्तार को उन्हों ने सिर्फ पचीस हज़ार मी के घेरे में माना है, उन का कथन है कि-तमाम पृथिवी की परिक्रमा ८२ दिन में रेल या बोट के द्वारा दे सकते हैं, उन्हों ने जो कुछ देख कर या दर्याफ्त कर कथन किया या माना है । ह शायद कथञ्चित् सत्य हो परन्तु हमारी समझ में यह बात नहीं आती है, किन्तु हमारी समझ में तो यह बात आई हुई है कि-पृथिवी बहुत लम्बी चौडी है, सगर चक्रवती के समय में दक्षिण की तरफ से दरियाव खुली पृथिवी में आया था जिस से बहुत सी पृथिवी जल में चली गई, तथा दरियाव ने उत्तर में भी इधर से ही चक्कर खाया था, ऋषभदेव के समय में से नकाशा जम्बूद्वीप भरतक्षेत्र का था वह अब बिगड़ गया है अर्थात् उस की और ही शकल दीर ने लगी है, दरियाव के आये हुए जल में बर्फ जम गई है इस लिये अब उस से आगे नह जा सकते हैं, इंगलिशमैन इसी लिये कह देते हैं कि पृथिवी इतनी ही है परन्तु धर्मशास्त्र के कथनानुसार पृथिवी बहुत है तथा देशविभाग के कारण उस के मालिक राजे भी बहुत हैं, वर्तमान समय में बुद्धिमान अंग्रेज भी प्रथिवी की सीमा का खोज करने के लिये फिरते हैं पर भी बर्फ के कारण आगे नहीं जा सकते हैं, देखो! खोज करते २ जिस प्रकार अमेरिक नई दुनिया का पता लगा, उसी प्रकार कालान्तर में भी खोज करनेवाले बुद्धिमान् उद्यमी लोगों को फिर भी कई स्थानों के पते मिलेंगे, इस लिये सर्वज्ञ तीर्थकर ने जो केवल ज्ञानके द्वारा देख कर प्रकाशित किया है वह सब यथार्थ है, क्योंकि इस के सिवाय बाकी के सब पदाथों का निर्णय जो उन्हों ने कीया है तथा निर्णय कर उन का कथन किया है, जब वे सब पदर्थ सत्यरूप में दीख रहे हैं तथा सत्य हैं तो यह विषय कैसे सत्य नहीं होगा, जो बात हमारी समझ में न आवे वह हमारी भूल है इस में आप्त वक्ताओं का कोई दोष नहीं है, भला सोचो तो मही कि इतनी सी पृथ्वी में पृथ्वी को गोलाई का मानना प्रमाण से कैसे सिद्ध हो सकता है, बेशक भरतक्षेत्र की गोलाई से इस हिसाब को हम न्यायपूर्वक स्वीकार करते हैं ।
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