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चतुर्थ अध्याय ।
२६५ ठंढे समय में कुछ न कुछ परिश्रम का काम करना चाहिये, अथवा स्वच्छ हवा में दो चार मील तक घूमना चाहिये कि जिससे कसरत हो कर दूध हज़म हो जावे, तथा हमारे विवेकलब्धि शीलसौभाग्य कार्यालय का शुद्ध वनस्पतियोंका बना हुः पुष्टिकारक चूर्ण दो महीनेतक सेवन करना चाहिये, क्योंकि इस के सेवन करने से शरीर में पुष्टि और बहुत शक्ति उत्पन्न होती है, इस के अतिरिक्त गेहूँ, जौ, मका, चावल और दाल आदि पदार्थों में अधिक पुष्टिकारक तत्व मौजूद है इसलिये ये सब पदार्थ दुर्बल मनुष्य के लिये उपयोगी हैं, एवं आलू, केला, आम, सकरकन्द और पनीर, इन सब पुष्टिकारक वस्तुओंका भी सेवन समयानुसार थोड़ा २ करना योग्य है।
ऊपर लिखे हुए पुष्टिकारक पदार्थ दुर्बल मनुष्य को यद्यपि बलवान् कर देते हैं परन्तु इन के सेवन के समय इन के पचाने के लिये परिश्रम अवश्य करना चाहिये, क्योंकि पुष्टिकारक पदार्थों के सेवन के समय उन के पचाने के लिये यदि परिश्रम अथा व्यायाम न किया जावे तो चरबी बढ़ कर शरीर स्थूल पड़ जाता है और अशक हो जाता है।
जब ऊपर लिखे पदार्थों के सेवन से शरीर दृढ़ और पुष्ट हो जाये तब खुराक को धीरे २ बदल देना चाहिये अर्थात् शरीरकी सिर्फ आरोग्यता बनी रहे ऐसी खुराक खाते रहना चाहिये, इस विषय में यह भी स्मरण रखना चाहिये कि इतनी पुष्टिकारक खुराक भी नहीं खानी चाहिये कि जिस से पाचनशक्ति मन्द पड़ कर रोग उत्पन्न हो जाये और न इतना परिश्रम ही करना चाहिये कि जिस से शरीर शिथिल पड़ कर रोगोंका आश्रय बन जावे । __ यदि शरीर में कोई रोग हो तो उस समय में पुष्टिकारक खुराक नहीं खानी चाहिये, किन्तु औषध आदि के द्वारा जब रोग मिट जावे तथा मंदाग्नि भी न रहे तव पुष्टिकारक खुराक खानी चाहिये।
स्थूल मनुष्य के खाने योग्य खुराक । रूप स्थूल मनुष्य प्रायः शक्तिमान नहीं होते हैं किन्तु अधिक रुधिरवाला पुष्ट मनुष्य दृढ़ शरीरवाला तथा बलवान होता है और केवल मेद चरबी तथा मेद वायु से जिनका शरीर फूल जाता है वे मनुष्य अशक्त होते हैं, जो मनुष्य घी दूध मक्खन मलाई मीठा और मिश्री आदि बहुत पुष्टिकारक खुराक सदा खाते हैं और परिश्रम बिलकुल नहीं करते हैं अर्थात् गद्दी तकियों के दास बन कर एक जगह बैटे रहते हैं वे लोग ऐसे वृथा (शक्तिहीन) पुष्ट होजाते हैं।
छ. और मक्खन आदि पुष्टिकारक पदार्थ जो शरीर की गर्मी कायम रखने और पुष्टि के लिये खाये जाते हैं वे परिमित ही खाने चाहियें, क्योंकि अधिक खाने से वे पदार्थ पचते नहीं हैं और शरीर में चरबी इकट्ठी हो जाती है, शरीर बेडौल हो
१-इस के सेवन की विधि का पत्र इस के साथ में ही भेजा जाता है तथा दो महीनोंतक सेवन करने योग्य इस (पुष्टिकारक) चूर्ण का मूल्य केवल ५ रुपये मात्र है ॥
२३ जै० सं०
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