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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
कुपथ्य पदाथ। दाह करनेवाले, जलानेवाले, गलानेवाले, सड़ाने के स्वभाववाले और ज़हर का गुण करनेवाले पदार्थ को कुपथ्य कहते हैं, यद्यपि इन पांचों प्रकार के पदार्थों में से कोई पदार्थ बुद्धिपूर्वक उपयोग में लाने से सम्भव है कि कुछ फायदा भी करे, तथापि ये सब पदार्थ सामान्यतया शरीर को हानि पहुँचानेवाले ही हैं, क्योंकि ऐसी चीजें जब कभी किसी एक रोग को मिटाती भी हैं तो दूसरे रोग को पैदा कर देती हैं, जैसे देखो! खार अर्थात् नमक के अधिक खाने से वह पेट की वायु गोला और गांठ को गला देता है परन्तु शरीर के धातु को विगाड़ कर पौरूप में बाधा पहुँचाता है।
इन पांचों प्रकार के पदार्थों में से दाहकारक पदार्थ पित्त को बिगाड़ कर अनेक प्रकार के रोगों को उत्पन्न करते हैं, इमली आदि अति खट्टे पदार्थ शरीर के गला कर सन्धियों को ढीला कर पौरुप को कम कर देते हैं ।
इसप्रकार के पदार्थो से यद्यपि एकदम हानि नहीं देखी जाती है परन्तु बहुत दिनोंतक निरन्तर सेवन करने से ये पदार्थ प्रकृतिको इस प्रकार विकृत कर इते हैं कि यह शरीर अनेक रोगों का गृह बन जाता है इस लिये पहले पथ्य पर ों में जो २ पदार्थ लिख चुके हैं उन्हीं का सदा सेवन करना चाहिये, तथा जो पदार्थ पथ्यापथ्य में लिखे हैं उन का ऋतु और प्रकृति के अनुसार कम वर्नाव रखना चाहिये, और जो कुपथ्य पदार्थ कहे हैं उन का उपयोग तो बहुत ही आवः यकता होने पर रोगविशेप में औपध के समान करना चाहिये अर्थात् प्रतिदिन की खुराक में उन (कुपथ्य ) पदार्थों का कभी उपयोग नहीं करना चाहिये, इस विषय में यह भी स्मरण रखना चाहिये कि जो पथ्यापथ्य पदार्थ हैं वे भी उन पुर-पों को कभी हानि नहीं पहुंचाते हैं जिन का प्रतिदिन का अभ्यास जन्म से ही उन पदार्थों के खाने का पड़ जाता है, जैसे-बाजरी, गुड़, उड़द, छाछ और दही आदि पदार्थ, क्यों-कि ये चीजें ऋतु और प्रकृति के अनुसार जैसे पथ्य हैं वैसे कुपथ्य भी हैं, परन्तु मारवाड़ देश में इन चारों चीज़ों का उपयोग प्रायः वहां के लोर सदा करते हैं और उन को कुछ नुकसान नहीं होता है, इसी प्रकार पञ्जाबवाले उड़द का उपयोग सदा करते हैं परन्तु उन को कुछ नुकसान नहीं करता है, इस का कारण सिर्फ अभ्यास ही है, इसी प्रकार हानिकारक पदार्थ भी अल्प परिमाण में खाये जाने से कम हानि करते हैं तथा नहीं भी करते हैं, दूध यद्यपि पथ्य है तो भी किसी २ के अनुकूल नहीं आता है अर्थात् दस्त लग जाते हैं इस र यही सिद्ध होता है कि-खान पान के पदार्थ अपनी प्रकृति, शरीर का बन्धान, नित्य का अभ्यास, ऋतु और रोग की परीक्षा आदि सब बातों का विचार कर उपयोग में आने से हानि नहीं करते हैं, क्योंकि देखो! एक ही पदार्थ में प्रकृति और ऋतु के भेद से पथ्य और कुपथ्य दोनों गुण रहते हैं, इस के सिवाय यह देख जाता
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