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प्रथम अध्याय ।
नम्बर ॥ नियम ॥
व्यञ्जनों के द्वारा शब्दों का मेल ॥ ३ यदि च्, द, प, वर्ण से परे घोष, अच+अन्त-अजन्त । पट्+वदन-पड्ड
अन्तस्थ वा स्वर वर्ण रहे तो क्रमसे दन । अप्+जा-अला, इत्यादि ॥ ज, इ और व् होता है । ४ यदि इस्व स्वर से परे छ वर्ण रहे वृक्ष+छाया वृक्षच्छाया । अव+छेद
तो यह च सहित हो जाता है, अवच्छेद । परि+छेद-परिच्छेद । परन्तु परन्तु दीर्घ स्वरसे परे कहीं २ लक्ष्मी+छाया लक्ष्मीच्छाया वा लक्ष्मीहोता है।
छाया ॥ ५ यदि त से परे चवर्ग अथवा टवर्ग तत्+चारु-तच्चारु । सत्+जाति-सजा
का प्रथम वा द्वितीय वर्ण हो तो ति । उत्+ज्वल-उज्वल । तत्+ त् के स्थान में च वा टू हो जाता | टीका-तट्टीका । सत्+जीवन-सज्जीवन। है. और तृतीय वा चतुर्थ वर्ण परे जगत्+जीव-जगजीव । सत्+जन रहे तो जू वा इ हो जाता है ॥
सजन ॥ ६ यदि 1 से परे गू, घ, द्, ध्, ब, सत्+भक्ति-सद्भक्ति । जगत्+ईश
भू, य, र, वू, अथवा स्वर वर्ण जगदीश । सत्+आचार-सदाचार । रहे तो त् के स्थान में दू हो सत्+धर्म सद्धर्म, इत्यादि ॥
जाता है ॥ ७ यदि अनुस्वार से परे अन्तस्थ वा सं+हार-संहार । सं+यम-संयम । सं+ ऊष्म वर्ण रहे तो कुछ भी विकार रक्षण-संरक्षण । सं+वत्सर-संवत्सर ॥ नहीं होता ॥ - यदि अनुस्वार से परे किसी वर्ग सं+गति-सङ्गति । अपरं+पार अपर
का कोई वर्ण रहे तो उस अनुस्वार पार । अहं+कार-अहङ्कार । सं+चार= के स्थान में उसी वर्ग का पांचवां सञ्चार । सं+बोधन सम्बोधन, इत्यादि । वर्ण हो जाता है । ९ यदि अनुस्वार से परे स्वर वर्ण सं+आचार-समाचार । सं+उदाय रहे तो मकार हो जाता है ॥ समुदाय । सं+ऋद्धि-समृद्धि, इत्यादि ।
विसर्गसन्धि । इस सन्धि के भी बहुत से नियम हैं उनमें से कुछ दिखाते हैं:नम्बर ॥ नियम ॥
विसर्गद्वारा शब्दों का मेल ॥ ५ यदि विसर्ग से परे प्रत्येक वर्ग का मनः+गत-मनोगत । पयः+धर-पयो
तीसग, चौथा, पांचवां अक्षर, धर। मनः+हर-मनोहर। अहः+भाग्य . अथवा य, र, ल, वू, हु, हो तो =अहोभाग्य । अधः+मुख-अधोमुख, ओ हो जाता है ।
| इत्यादि ॥ २ जै० सं०
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