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चतुर्थ अध्याय ।
२४९ तक नहीं कर सकते हैं सिर्फ त्यौहार आदि को जिन को घी का दर्शन होता है उन के लिये प्रतिदिन चाय का पीना महा हानिकारक है; चाय के पीने की अपेक्षा तो यथाशक्य आरोग्यता को कायम रखने के लिये प्रतिदिन स्वयं दूध पीना चाहिये सथा बच्चों को पिलाना चाहिये ।
काफी-चाय के समान एक दूसरी वस्तु काफी है जो कि अरब स्थान से यहां आती है, चाय और काफी दोनो का गुण प्रायः मिलता हुआ सा है, यह एक वृक्ष का बीज है इस को बूंद दाना भी कहते हैं, बहुत से लोग इस के दानों को सेक कर रख छोड़ते हैं और भोजन करने के पीछे सुपारी की तरह चाब कर मुँह को साफ करते हैं, इस के दानों को सेकने से उन में सुगन्ध हो जाती है और वे एक मसालेदार चीज़ के समान बन जाते हैं, इस के दानों में सिर्फ एक भाग गुणकारी है, एक भाग खट्टा है, बाकी का सबभाग कडुआ और कब्जी करनेवाला है, इस के कच्चे दाने बहुत दिनों तक रह सकते हैं अर्थात् बिगड़ते नहीं हैं, परन्तु सेके हुए अथवा दले हुए दानों को बहुत दिनोंतक रखने से उन की सुगन्धि तथा स्वाद जाता रहता है।
चाय की अपेक्षा काफी अधिक पौष्टिक तथा शक्तिदायक है परन्तु वह भारी है इस लिये निर्बल और बीमार आदमी को नहीं पचती है, काफी से शरीर में गर्मी
और चेतनता आती है शीत ऋतु में तथा शीत देशों में यात्रा करते समय यदि काफी पी जावे तो शरीर में गर्मी रहसकती है।
काफी के चूर्ण की थैली बना कर पतीली के उबलते हुए जल में डाल कर पांच सात मिनट तक उसी में रख कर पीछे उतारने से काफी तैयार होजाती है, चाय तथा काफी में बहुत मीठा डाल कर पीने से निर्बल कोठेवाले को अवश्य हानि पहुँचती है इस लिये उन दोनों में थोड़ा सा ही मीठा डाल कर पीना चाहिये।
काफी के पानी में चौथा भाग दूध डालना चाहिये, इन दोनों चीजों को बहुत गर्म पीने से पाचनशक्ति कम पड़ती है तथा धातु में भी हानि पहुँचती है, इस गर्म देश में काफी गर्मी पैदाकर नींद का नाश करती है इसलिये इसे रात को नहीं पीना चाहिये किन्तु आवश्यकता हो तब इसे प्रातःकाल में ही पीना चाहि, हां यदि किसी कारण से किसी को रात्रि में निद्रा से बचना हो तो भले ही उसे रात में काफी पी लेनी चाहिये, जैसे-किसी ने विष खाया हो तो उस को रात्रि में नींद से बचाने के लिये अर्थात् जागृत (जागता हुआ) रखने के लिये वार २ काफी पिलाया करते हैं ।
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