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चतुर्थ अध्याय ।
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भैस का मक्खन - भैस का मक्खन वायु तथा कफ को करता है, भारी है, दाह पित्त और श्रमको मिटाता है, मेद तथा वीर्य को बढाता है।
वासा मक्खन खारा तीखा और खट्टा होजानेसे वमन, हरस, कोढ़, कफ तथा मेद को उत्पन्न करता है ।
aaवर्ग ।
दही के सामान्य गुण - दही - गर्म, अग्निदीपक, भारी, पचनेपर खट्टा तथा दस्त को रोकनेवाला है, पित्त, रक्तविकार, शोथ, मेद और कफ को उत्पन्न करता है, पीनस, जुखाम, विषम ज्वर ( ठंढ का तप ), अतीसार, अरुचि, मूत्रकृच्छू और कृशता (दुर्बलता ) को दूर करता है, इस को सदा युक्ति के साथ खाना चाहिये ।
दही मुख्यतया पांच प्रकार का होता है -- मन्द, स्वादु, स्वाद्वम्ल, अम्ल और अत्यम्ल, इन के स्वरूप और गुणों का संक्षेप से वर्णन किया जाता है:
मन्द - जो दही कुछ गादा हो तथा मिश्रित ( कुछ दूध की तरह तथा कुछ दही की तरह ) स्वादवाला हो उस को मन्द दही कहते हैं, यह मल मूत्र की प्रवृत्ति को, तीनों दोषों को और दाह को उत्पन्न करता है ।
स्वादु – जो दही खूब जम गया हो, जिस का स्वाद अच्छी तरह मालूम होता हो, मीठे रसवाला हो तथा अव्यक्त अम्ल रसबाला ( जिस का अम्ल रस प्रकट में न मालूम पड़ता हो ) हो वह स्वादु दही कहलाता है, यह शर्दी मेद तथा कफ को पैदा करता है परन्तु वायु को हरता है, रक्तपित्त में भी फायदा करता है । खूब जमा हुआ हो, खाने में दही कहते हैं, यह मध्यम
स्वाद्वम्ल - जो दही खट्टा और मीठा भी हो, थोड़ी सी तुर्सी देता हो उस को स्वाद्वम्ल गुणवाला है।
अम्ल - जिस दही में मिठास बिलकुल न हो तथा खट्टा स्वाद प्रकट मालूम देता हो उस को अम्ल दही कहते हैं, यह यद्यपि अग्नि को तो प्रदीप्त करता है, परंतु पित्त कफ और खून को बढ़ाता है और बिगाड़ता है ।
अत्यम्ल - जिस दही के खाने से दाँत बँध से जावें (खट्टे पड़ जाने के कारण जिन से रोटी आदि भी ठीक रीति से न खाई जा सके ऐसे हो जावें ), रोमाञ्च होने लगे ( रोंगटे खड़े हो जावें, ) अत्यन्त ही खट्टा हो, कण्ठ में जलन हो जावे उस को अत्यम्ल दही कहते हैं, यह दही भी यद्यपि अग्नि को प्रदीप्त करता है परन्तु पित्त और रक्त को बहुत ही बिगाड़ता है ।
इन पांचों प्रकार के दहियों में से स्वाद्वम्ल दही सब से अच्छा होता है ।
१- शेष पशुओं के मक्खन के गुणों का वर्णन अनावश्यक समझ कर नहीं किया ॥ २- यह घृत का संक्षेप से वर्णन किया गया है, इसका विशेष वर्णन दूसरे वैद्यक ग्रन्थों में देखना चाहिये || ३-वैसे देखा जावे तो मीठा और खट्टा, ये दो ही भेद प्रतीत होते हैं ॥
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