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चतुर्थ अध्याय ।
२०३ लानेवाला), मलभेदक ( मल को तोड़नेवाला ), स्तनों में दूध को बढ़ानेवाला मांस और मेद की वृद्धि करनेवाला, शक्तिप्रद ( ताकत देनेवाला ), वायुनाशक और पित्त कफ को बड़ानेवाला है ।
उपयोग- - श्वास, श्रान्ति, अर्दित वायु ( जिस में मुँह टेढ़ा हो जाता है ) तथा अन्य भी कई वायु के रोगों में यह पथ्य है, शीत ऋतु में तथा वादी की तासीर वाले पुरुषों के लिये यह फायदेमन्द है, पचने के बाद उड़द गर्म और खट्टे रस को उत्पन्न करता है इस लिये पित्त और कफ की प्रकृतिवालों को तथा इन दोनों दोपों से उत्पन्न हुए रोगवालों को हानि पहुँचाता है ।
चना - हलका, ठंढा, रूक्ष, रुचिकर, वर्णशोधक ( रंग को सुधारनेवाला ) और शक्तिदायक ( ताकत देनेवाला है ।
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उपयोग - कफ तथा पित्त के रोगों में फायदेमन्द है, कुछ ज्वर को भी मिटाता है परन्तु वादी कर्ता, कबज़ी करनेवाला अथवा अधिक दस्त लगानेवाला है, खुराक में काम देनेवाली चने की बहुत सी चीजें बनती है क्योंकि यह साबत, आटा (बेसन) और दाल इन तीनों तरह से काम में लाया जाता है, मोतीचूर का ताजा लड्डू पित्ती के रोग को शीघ्र ही मिटाता है, चने में चरबी का भाग कम है इस लिये इस में घी और तेल आदि स्निग्ध पदार्थ अधिक डालना चाहिये, यह नासी के अनुसार परिमित खाने से हानि नहीं करता है, घी के कम डालने से चने के सब पदार्थ हानि करते हैं ।
मौठ - रुचिकर, पुष्टिकारक, मीठा, रूक्ष, ग्राही, बलवर्धक, हलका, कफ तथा पित्त को मिटानेवाला और वायुकारक है ।
उपयोग – यह रक्तपित्त के रोग, ज्वर, दाह, कृमि और उन्माद रोग में पथ्य है । चवला - मीठा, भारी, दस्त लानेवाला, रूक्ष, वायुकर्ता, रुचिकर, स्तन में दूध को बढ़ानेवाला, वीर्य को बिगाड़नेवाला और गर्म है ।
उपयोग - यह अत्यन्त वायुकर्ता है इस लिये इस को अधिक कभी नहीं खाना चाहिये, यह खाने में मीठा तथा पचने के बाद सट्टे रस को उत्पन्न करता है, शक्तिदायक है परन्तु रूक्ष और भारी होने से टेट में गुरुता को उत्पन्न कर वायु को करता है, गर्म, दाहकारी और शरीरशोधक ( शरीर को सुखानेवाला ) है, शरीर के विष का तथा आंखों के तेज का नाशक है ।
मटर - रुचिकर, मीठा, पुष्टिकर, रूक्ष, ग्राही, शक्तिवर्धक ( ताकत को बढ़ानेबाला ), हलका, पित्त कफ को मिटानेवाला और वायुकती है।
१ - दिल्ली के चारों तरफ पंजाव तक इस की दाल को हमेशा खाते हैं तथा काठियावाडवाले इस के ल शीतकाल में पुष्टि के लिये बहुत खाते हैं । २ - गुजरातवाले तेल के साथ चने का उपयोग करते हैं ॥ ३- इस धान्यवर्ग में बहुत थोड़े आवश्यक धान्यों का वर्णन किया गया है, शेष धान्यों का तथा उन से बने हुए पदार्थों का वर्णन बृहन्निराकर आदि ग्रन्थों में देख लेना चाहिये ||
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