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चतुर्थ अध्याय ।
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गेहूँ में खार तथा चरबी का भाग बहुत कम है इसी कारण गेहूँ के आटे में नमक डालकर रोटी बनाई जाती है, द्रव्यानुसार घी मक्खन और मलाई आदि पदार्थों के साथ गेहूँ का यथायोग्य खाना अधिक लाभदायक है, गेहूँ की मैदा पचने में भारी होती है इसलिये मन्दाग्निवाले लोगों को मैदे की रोटी तथा पूड़ी नहीं खानी चाहिये, गेहूँ के आटे से बहुत से पदार्थ बनते हैं, गेहूँ की राव तथा पतली घाट पचने में हलकी होती है अर्थात् घाट की अपेक्षा रोटी भारी होती है, एवं पूड़ी, हलुआ (शीरा), लड्डू, मगध और गुलपपड़ी, इन पदार्थों में पूर्व २ की अपेक्षा उत्तरोत्तर पचने में भारी होते हैं, घी के साथ खाने से गेहूँ वादी नहीं करता है ।
बाजरी - गर्म, रूक्ष, पुष्ट, हृदय को हितकारी, स्त्रियों के काम को बढ़ानेवाली, पचने में भारी और वीर्य को हानि पहुँचानेवाली वस्तु है ।
उपयोग - बाजरी गर्म होने से पित्त को खराब करती है, इसलिये पित्त प्रकृति वाले लोगों को इससे बचना चाहिये, रुक्ष होने से यह कुछ वायु को भी करती है, जिन २ देशों में बाजरी की उत्पत्ति अधिक होती है तथा दूसरे अन्न कम पैदा होते हैं वहां के लोगों को नित्य के अभ्यास से बाजरी ही पथ्य हो जाती है ।
यद्यपि पोपण का तत्व बाजरी में भी गेहूँ के ही लगभग है तथापि गेहूँ की अपेक्षा चरबी का तत्व इस में विशेष है इस लिये घी के विना इस का खाना हानि करता है ।
ज्वार-ठंढी, मीठी, हलकी, रूक्ष और पुष्ट है ।
उपयोग - ज्वार में बाजरी के समान ही पोषण का तत्व है तथा चरबी का भाग भी बाजरी के ही समान है, ज्वार करड़ी और रूक्ष है इस लिये वह वायु करती है परन्तु नित्य का अभ्यास होने से मरहठे, कुणबी तथा गुजरात और काठियावाड़ आदि देशों के निवासी गरीब लोग प्रायः ज्वार और अरहर ( तूर ) कील से ही अपना निर्वाह करते हैं ।
मंग - ठंढा, ग्राही, हलका, स्वादिष्ट, कफ पित्त को मिटानेवाला और आंखों को हितकारी है परन्तु कुछ वायु करता है ।
उपयोग - दाल की सब जातियों में मूंग की दाल उत्तम होती है, क्योंकि
१- शिदावादी ओसवाल लोगों के यहां प्रतिदिन खुराक में मैदा का उपयोग होता है और दाल तथा शाकादिमें वहां वाले अमचुर बहुत डालते हैं जिस से पित्त बढ़ता है - सत्य तो यह है कि- ये दोनों खुराकें निर्बलता की हेतु हैं परन्तु उन लोगों में प्रातःकाल प्रायः दूध और वादाम की कतली के खाने की चाल है इस लिये उन के जीवन का आवश्यक तत्व कायम रहता है तथापि ऊपर कही हुई दोनों वस्तुयें अपना प्रभाव दिखलाती रहती हैं ॥। २ - जैसे बीकानेर के राज्य में बाजरी की ही विशेष खपत है, मोंठ, बाजरी और मतीरे जैसे इस जमीन में होते हैं वैसे और कहीं भी नहीं होते हैं ।
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