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चतुर्थ अध्याय ।
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खाने के पदार्थों में प्रायः छओं रसोंका प्रतिदिन उपयोग होता है तथापि कडुआ और कषैला रस खानेके पदार्थों में स्पष्टतया (साफ तौर से ) देखने में नहीं आता है, क्योंकि ये दोनों रस बहुत से पदार्थों में अव्यक्त ( छिपे हुए ) रहते हैं, शेष चार रस ( मीठा, खट्टा, खारा और तीखा ) प्रतिदिन विशेष उपयोग में आते हैं ।
यह चतुर्थ अध्यायका आहारवर्णन नामक चतुर्थ प्रकरण समाप्त हुआ ॥
पाँचवां प्रकरण |
वैद्यक भाग निघण्टु |
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धान्यवर्ग ।
चावल - मधुर, अग्निदीपक, बलवर्धक, कान्तिकर, धातुवर्धक, विदोपहर और पेशाब लानेवाला है ।
उपयोग - यद्यपि चावलों की बहुत सी जातियां हैं तथापि सामान्य रीति से कमो के चावल स्वाद में उत्तम होते हैं और उस में भी दाऊदखानी चावल बहुत ही तारीफ के लायक हैं, गुण में सब चावलों में सांठी चावल उत्तम होते हैं, परन्तु वे बहुत लाल तथा मोटे होने से काम में बहुत नहीं लाये जाते हैं, प्रायः देखा गया है कि - शौकीन लोग खाने में भी गुणको न देख कर शौक को ही पसन्द करते हैं, बस चावलों के विषय में भी यही हाल है ।
चावलों में पौष्टिक और चरबीवाला अर्थात् चिकना तत्व बहुत ही कम है, इस लिये चावल पचने में बहुत ही हलका है, इसी लिये बालकों और रोगियों के लिये बलों की खुराक विशेष अनुकूल होती है ।
सबूदाना यद्यपि चावलों की जाति में नहीं है परन्तु गुण में चावलों से भी हलका है, इसलिये छोटे बालकों और रोगियों को साबूदाने की ही खुराक प्रायः दी जाती है ।
यद्यपि डाक्टर लोग कई समयों में चावलों की खुराक का निषेध ( मनाई )
१- मरण रहना चाहिये कि - यद्यपि ये सब रस प्रतिदिन भोजन में उपयोग में आते हैं परन्तु इनके सेवन से तो हानि ही होती है, जिस को पाठकगण ऊपर के लेख से जान सकते हैं देखो ! इन सब रसों में मीठा रस यद्यपि विशेष उपयोगी है तथापि अत्यन्त सेवन से वह भी बहुत हानि करता है, इसलिये इन के अत्यन्त सेवन से सदैव बचना चाहिये ॥ २ - इन को गुजरात में वरीना चोखा भी कहते हैं ।
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