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प्रथम अध्याय ।
क ख ग घ ङ। च छ ज झ ट ठ ड ढ ण । त थ द ध न । प फ ब भ म । य र ल व श ष स ह । यह वर्णसमूह स्वयंसिद्ध अर्थात् अनादिसिद्ध है, किन्तु साधित ( बनाया हुआ) नहीं है ॥
द्वितीय सूत्र-उन वर्गों में से पहिले चौदह स्वर हैं अर्थात् अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ ल ल ए ऐ ओ औ, ये स्वर हैं ॥
तीसरा सूत्र–उनमें से पहिले दश वर्गों की समान संज्ञा है अर्थात् अ आ इ ई उ ऊ ऋ ल ल, इनको समान कहते हैं ।
चौथा सूत्र-उन समानसंज्ञक वर्गों में दो २ वर्ण परस्पर सवर्णी माने जाते हैं, जैसे-अ का सवर्णी आ, इ का सवर्णी ई, उ का सवर्णी ऊ, ऋका सवर्णी ऋ, ल का सवर्णी ल है ॥
पांचवां सूत्र-उन द्विक वर्गों में से पूर्व २ वर्ण इस्त्र कहाते हैं, अर्थात् अ इ उ ऋ ल, ये ह्रस्व ( एकमात्रिक) कहाते हैं ।
छठा सूत्र-उन्हीं द्विकों में से पिछले वर्ण दीर्घ कहाते हैं अर्थात् आ ई ऊ ऋल, ये दीर्घ (द्विमात्रिक) हैं । ___ सातवां सूत्र-अवर्ण को छोड़ कर शेष स्वर नामी कहाते हैं अर्थात् इ ई उ ऊ ऋ ल ल इनकी नामी संज्ञा है ॥
भाठवां सूत्र-एकारादि सन्ध्यक्षर वर्ण हैं अर्थात् ए ऐ ओ औ इन वर्गों को सन्ध्यक्षर वर्ण कहते हैं, क्योंकि ये सन्धि के द्वारा बने हैं जैसे-अ वा आ+इ वा ई-ए। अ वा आ+ए वा ऐ ऐ। अ वा आ+उ वा ऊ-ओ । अ वा आ+ओ वा औ-औ॥ __ नवां सूत्र-ककार आदि व्यञ्जन वर्ण हैं अर्थात् क से लेकर ह पर्यन्त वर्णों की व्यञ्जन संज्ञा है ॥
दशवां सूत्र-वे ही ककारादि वर्ण पांच २ मिलकर वर्ग कहलाते हैं और वर्ग पांच हैं अर्थात् कवर्ग-क ख ग घ ङ। चवर्ग-च छ ज झ ञ । ट्वर्ग-ट ठ ड ढ ण । तवर्ग-त थ द ध न । पवर्ग-प फ ब भ म ॥ ___ ग्यारहवां तथा बारहवां सूत्र-वर्गों के पहिले और दूसरे वर्ण तथा श, प, स, ये अघोष हैं, अर्थात् क ख, च छ, ट ठ, त थ, प फ, और श, ष, स, इन वर्णों को अघोष कहते हैं।
तेरहवां सूत्र-दूसरे वर्ण घोषवान् हैं अर्थात् ऊपर लिखे वर्षों से भिन्न जो वर्ण हैं उनको घोषवान् कहते हैं ।
चौदहवां सूत्र-ङ, ञ, ण, न, म, ये वर्ण अनुनासिक हैं अर्थात् इन पांचों वर्गों का उच्चारण मुखसहित नासिका से होता है-इसलिये इन्हें अनुनासिक कहते हैं ।
पन्द्रहवां सूत्र-य, र, ल, व, को अन्तःस्थ कहते हैं अर्थात् पांचों वर्गों के अन्त में स्थित होने से इनकी अन्तःस्थ संज्ञा है ॥
१. कोई आचार्य अन्तःस्थ संज्ञा मानते हैं, उसका हेतु यह है कि पांचों वर्गों के तथा ऊष्म वर्गों के मध्य में स्थित होने से ये अन्तःस्थ (मध्यवर्ती ) हैं ॥
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