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जैनसम्प्रदायशिक्षा । हो तो उसको बंद करने के लिये उस (घाव वा जखम ) पर भीगी हुई पट्टी हर दम रखनी चाहिये।
प्रसूति आदि के समय में जब लोहू का स्राव हो तब गर्भाशय में ठंढा पानी डालने से अथवा उस पर बर्फका टुकड़ा रखने से लोहू का स्राव बन्द हो जाता है, ऐसे समय में पेडू सांथल तथा उत्पत्यवयव (योनि) पर भी ठंढे पानी से भीगी हुई पट्टी के रखने से लाभ होता है।
जब गर्भिणी स्त्री के लोहू का स्राव होने लगे और गर्भपात होने के चिह्न मालूम पड़ें तो शीघ्रही पेट पेडू तथा जननेन्द्रिय (योनि) पर ठंढे पानीसे भीगी हुई पट्टी रखना चाहिये, ऐसा करने से उस समय गर्भपात का होना रुक जाना है।
स्त्रियों के मासिक धर्म के समय में यदि परिमाण से (जितना होना चाहिये उस से) अधिक रक्तस्राव हो तब भी ठंढे पानी का उयोग करना चाहिये। ___ इसी प्रकार मूर्छा मृगी और उन्माद (हिस्टीरिया) आदि रोगों में तथा मेस्मेरिजम से बेहोशी आदि की दशा में आंख तथा शिरआदि अंगों पर टंढे पानी के छींटे देने से शीघ्र ही जाग्रदयस्था हो जाती है।
२-संकोचन-ठंढ पानी स्नायु का संकोच न करता है इस लिये जब वृषणों (अण्डकोशों) में अन्तड़िया उतर कर बहुत पीड़ा करें तब वृपणों पर ठंडे पानीसे भीगी हुई पट्टी अथवा बर्फ रखना चाहिये, क्यों कि ऐसा करने से अन्नड़ियां संकुचित हो कर उपर को चढ़ जावेंगी।
स्त्रियों के प्रदर नामक एक रोग हो जाता है जिस के होने से जननेन्द्रिय से सफेद लाल तथा मिश्रित रंगके पानी का तथा रक्त का स्राव होता है, यह ठंढे पानो की पिचकारी के लगाने से अथवा ठंडे पानी के छींटे देने से बन्द हो जाता है।
एवं कभी २ स्त्रियों के डील (फंदा)और निर्बल बाल कों के काच निकल निकल आती है वह भी ठंढे पानी के प्रक्षालन (धोने) से संकोच पाकर बैठ जाती है।
किन्हीं २ स्त्रियों के मूत्र मार्ग में बैठ ते उठ ते समय शब्द हुआ करता है तथा कुछ दर्द भी होता है उस में भी ठंडे पानी के छींटे देनेसे लाभ होता है। __ एवं पुरुष के वीर्य स्राव में अथवा रात्रि में स्वप्न के द्वारा बीर्यका स्राव होने पर सोते समय पेडू तथा कमर पर पानी के छींटे देने चाहियें ऐसा करने से वीर्य की गर्मी कम पड़ जाती है तथा वीर्यवाहिनी नाड़ियां (वीर्य को ले जानेवाली नसें) दृढ़ हो कर संकुचित हो जाती हैं तथा ऐसा होने से वीर्यस्राव की अधिकांश में रुकावट हो सकती है।
१-यह भी सारण रखना चाहिये कि घाव के लगने पर ठंडे पानीका उपयोग तब है फायदेमन्द होता है जब कि वह शीघ्र ही किया जावे, क्योंकि बहुत देर के बाद उसका उपयोग करने से फायदा होने का संभव कम रहता है ।। २-यह नियम की बात है कि-शर्दी वस्तुओं का संकोच और उष्णता वस्तुओं का फैलाव करती है।
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