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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
सेठ साहूकारों को उचित है कि-जल की तंगी को मिटाने का तथा जल. के सुधारने का पूरा प्रयत्न करें तथा सामान्य प्रजा के लोगों को भी मिलकर इस विषयमें ध्यान देना चाहिये।
यदि ऊपर लिखे अनुसार किसी बस्ती में एक ही नदी वा जलाशय हो तो उस का ऐसा प्रबंध करना चाहिये कि-उस नदी के ऊपर की तरफ का जल पीने को लेना चाहिये तथा बम्ती के निकास की तरफ अर्थात् नीचे की तरफ स्नान करना, कपड़े धोना और जानवरों को पानी पिलाना आदि कार्य करने चाहिये, बहुत सड़के (गज़रदम) प्रायः जल साफ रहता है इसलिये उस समय पीने के लिये जल भर लेना चाहिये, लोगों के सुख के लिये सार को यह भी उचित है कि-ऐसे जलस्थानों पर पहरा विठला देवे कि-जिस से पहरेवाला पुरुष जलाशय में नहाना, धोना, पशुओं को धोना और मरे आदमी की जलाई हुई राख आदि का चालना आदि बातों को न होनेदेवे।
बहुत पानीवाली जो नदी होती है तथा जिस का पानी जोर से बहता हैं उस का तो मैल और कचरा तले बैट जाता है अथवा किनारे पर आकर इकट्ठा हो जाता है परन्तु जो नदी छोटी अर्थान् कम जलबाली होती है तथा धीरे २ बहती है उस का सब मैल और कचरा आदि जल में ही मिला रहता है, एवं नालाव
और कुँए आदि के पानी में भी प्रायः मैल और कचरा मिला ही रहता है, इस लिये छोटी नदी तालाव और कुँए आदि के पानी की अपेक्षा बहुत जलवाली और जोर से बहती हुई नदी का पानी अच्छा होता है, इस पानी के सुधरे रहने का उपाय जैनसूत्रों में यह लिखा है कि उस जल में घुस के स्नान करना, दातोन करना, वस्त्र धोना, मुर्दे की राख डालना तथा हाड़ (फूल) डालना आदि कार्य नहीं करने चाहिये, क्योंकि-उक्त कार्यों के करने से वहां का जल खराब होकर प्राणियों को रोगी कर देता है और यह बात (प्राणियों को रोगी करने के कार्यों का करना) धर्म के कायदे से अत्यन्त विरुद्ध है, अस्थि या मुर्दे की राख से हवा औः जल खराब न होने पाये इस लिये उन ( अस्थि और राख ) को नीचे दबा कर ऊपर
१-हम ऐसे अवसर पर श्रीमान् राजराजेश्वर, नरेन्द्र शिरोमणि, महाराजाधिराज श्रीमन् श्रीगगासिंह जी बहादुर बीकानेर नरेश को अनेकानेक धन्यवाद दिये विना नहीं रह सकते है किजिन्हों ने इस समय प्रजा के हित और देश की आबादी के लिये अपने राज्य में नहर लाने का पूरा प्रयलकर कार्यारम्भ किया है, उक्त नरेशमें बड़ा प्रशंसनीय गुण यह है कि-अप एक मिनट भी अपना समय व्यर्थ में न गमाकर सदैव प्रजा के हित के लिये सुविचारों को क के उन में उद्यत रहा करते हैं, इस का प्रत्यक्ष प्रमाण यही है कि-कुछ वर्षों पहिले बीकानेर किन दशा में था और आज कल उक्त नरेश के सुप्रताप और श्रेष्ठ प्रबन्ध से किस उन्नति के शिखर पर जा पहुंचा है, सिर्फ यही हेतु है कि उक्त महाराज की निर्मल कीत्ति संसारभर में फैल रही है, यह सब उनकी उत्तम शिक्षा और उद्यम का ही फल है, इसी प्रकार से प्रजा का हित करना सब नरेशों का परम कर्तव्य है ॥
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