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नैनसम्प्रदायशिक्षा।
सकेगा, इसी प्रकार यदि कोई किसी सँकड़ी कोठरी के भीतर सोवे तो उस के मुँह में से निकली हुई अस्वच्छ हवा के संयोग से उस के आसपास की सब हवा भी अस्वच्छ हो जायगी और उस कोठरी में यदि स्वच्छ और नाज़ी हवाके आने जाने का खुलासा मार्ग न होगा तो उस के मुँह में से निकली हुई वही जहरीली हवा फिर भी उसी के श्वास के मार्ग से शरीर में प्रविष्ट होगी और ऐसा होने से शीघ्रही मृत्यु को प्राप्त हो जायगा, अथवा सके शरीर को अन्य किसी प्रकार की बहुत बड़ी हानि पहुँचेगी, परन्तु यदि मकान बड़ा हो तथा उस में खिड़कियां और बड़ा द्वार आदि हवा के आने जाने का मार्ग ठीक हो तो उस में सोने से मनुष्य को कोई हानि नहीं पहुँचती है, क्योंकि उन खिड़कियों और बड़े दर्वाजे आदि से अस्वच्छ हवा बाहर निकल जाती और स्वच्छ हवा भीतर आ जाती है, इसीलिये वास्तुशास्त्रज्ञ (गृहविद्या के जाननेवाले) जन सोने के मकानों में हवा के ठीक रीति से आने
जाने के लिये खिड़की आदि रखते हैं। __ श्वास के मार्ग से बाहर निकलती हुई हवा का दूसरा पदार्थ आर्द्रता (गीलापन वा पानी) है, इस हवा में पानी का भाग है या नहीं, इस का निश्चय करने के लिये स्लेट आदि पर अथवा राजस चाकू पर यदि श्वास छोड़ा जावे तो वह (स्लेट आदि) आर्द्रता से युक्त हो जावेगी, इस से सिद्ध है कि-श्वास की हवा में पानी अवश्य है।
तीसरा पदार्थ उस हवा में दुर्गन्ध युक्त मैल है अर्थात्-श्वास का जो पानी स्वच्छ नहीं होता है वह वर्तनों के धोवन के समान मैला और गन्दा होताहै उसी में सड़े हुए कई पदार्थ मिले रहते हैं, यदि उस को शरीर पर रहने दिया जावे तो वह रोगको उत्पन्न करता है अर्थात् श्वास की हवा में स्थित वह मलिन पदार्थ हवा के समान ही खराबी करता है, देखो! जो कई एक पेशेवाले लोग हरदम वस्त्र से अपने मुखको बांधे रहते हैं, वह (मुख का बांधना) रासायनिक योग से बहुत हानि करता है अर्थात्-मुँह पर दाग हो जाते हैं, मुँहके बाल उड जाते हैं, श्वास व कास रोग हो जाता है, इत्यादि अनेक खरावियां हो जाती हैं, इस का कारण केवल यही है कि-मुँह के बँधे रहने से विषैली हवा अच्छे प्रकार से बाहर नहीं निकलने पाती है। । प्रायः देखा जाता है कि-दूसरे मनुष्य के मुँह से पिये हुए पानी के पीने में बहुत से मनुष्य गन्दगी और अपवित्रता समझते हैं और इसी से वे दूसरे के जूठे पानी को पिया भी नहीं करते हैं, सो यह वेशक बहुत अच्छी बात है, परन्तु वे लोग यह नहीं जानते हैं कि-दूसरे के पिये हुए जल के पीने में अपवित्रता क्यों रहती है और किस लिये उसे नहीं पीना चाहिये, इस में अपवित्रता केवल वही है कि-एक मनुष्य के पीते समय उस के श्वास की हवा में स्थित दुर्गन्ध युक्त
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