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श्री ।
जैनसम्प्रदायशिक्षा |
अथवा
गृहस्थाश्रमशीलसौभाग्यभूषणमाला ।
प्रथम अध्याय ।
मङ्गलाचरण ।
ओंकार उदार अगम्य अपार संसारमें सार पदारथ नामी । सिद्धि समृद्धि सरूप अनूप भयो सबही सिर भूप सुधामी ॥ मत्रमें यत्र में ग्रन्थके पन्थमें जाऊं कियो धुर अन्तरजामी । पञ्चहिष्ट बसै परमिष्ठ सदा भ्रमसी करै ताहि सलामी ॥ १ ॥ गुरुमहिमा नमस्कार ।
महिमा जिनकी सिगरी महिमें जिन दीन्हो महा इक ज्ञान नगीनो । दूर भग्यो भ्रम सो तम देखत पूरि जग्यो परकाश नवीनो ॥ देहि देहि दूनो वधै अरु खायोहि खूटत नाहि खजीनो । ऐसो पसाय कियो गुरुराय तिन्हें धमसी पदपङ्कज लीनो ॥ १ ॥
प्रथम प्रकरण । (वर्णसमान्नाय )
स्वर वर्णोंका विवरण ।
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ॠ ल ल ए ऐ ओ औ अं अः ॥ व्यञ्जन वर्णोंका विवरण ।
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