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जैनसम्प्रदायशिक्षा ।
उस का नाश नहीं होता है, हां उस के साथ में जो स्थूल शरीर का संयोग है उस का नाश अवश्य होता है ।
कुछ
१- गर्भ स्थिति के पीछे सात दिन में वह वीर्य और शोणित गर्भाशय में गाढ़ा हो जाता है तथा सात दिन के पीछे वह पहिले की अपेक्षा अधिकतर कठिन और पिण्डाकार होकर आमकी गुठली के समान हो जाता है और इसके पीछे वह पिण्ड कठिन मांसग्रन्थि बनकर महीने भर में बजन ( तौल ) में सोलह तोले हो जाता है, इस लिये प्रथम महीने में स्त्रीको मधुर शीत वीर्य और नरम आहार का विशेष उपयोग करना चाहिये कि जिससे गर्भ की वृद्धि में कुछ विकार न हो ।
२ - दूसरे महीने में पूर्व महीने की अपेक्षा भी कुछ अधिक कठिन हो जाता है, इस लिये इस महीने में भी गर्भ की वृद्धि में किसी प्रकार की रुकावट न हो इस लिये ऊपर कहे हुए ही आहार का सेवन करना चाहिये ।
३- तीसरे महीने में अन्य लोगों को भी वह पिण्ड बड़ा हो जाने से गर्भाकृतिरूप मालूम पड़ने लगता है, इस मासमें ऊपर कहे हुए आहार के सिवाय दूधके साथ साठी चांवल खाना चाहिये ।
४ - चौथे महीने में गर्भिणी का शरीर भारी पड़ जाता है, गर्भ स्थिर हो जाता है तथा उस के सब अंग क्रम २ से बढ़ने लगते हैं, जब गर्भ का हृदय उत्पन्न होता है तब गर्भिणी स्त्री के ये चिह्न होते हैं—अरुचि, शरीर का भारीपन,
अन्न की इच्छा का न होना, कभी अच्छे वा बुरे पदार्थों की इच्छा का होना,
ओठ और स्तनों के मुख
पूर्व
स्तनों में दूध की उत्पत्ति, नेत्रों का शिथिल होना, का काला होना, पैरों में शोथ, मुख में पानी का इसी महीने में गर्भवती के कहा हुआ दोहद अर्थात् उसके कई प्रकार के इरादे पैदा होते हैं, पदार्थों की इच्छा होती है, इस लिये उस समय में पूरे तौर से उसे देने चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से बड़ी आयुवाला होता है, इस दोहद के विषय में यह स्वाभाविक नियम है कि - यदि पुण्यात्मा जीव गर्भ में आया हो तो गर्भिणी के अच्छे इरादे पैदा होते हैं, तथा यदि पापी जीव गर्भ में आया हो तो उस के बुरे इरादे होते हैं, तात्पर्य यह है कि -गर्भिणी को जिन पदार्थों की इच्छा हो उन्हीं पदार्थों के गुणों से युक्त बालक होता है, यदि गर्भिणी की इच्छा के अनुसार उस को
आना आदि, तथा प्रायः उत्पन्न होने लगता है मन को अच्छे लगनेवाले उस के अभीष्ट पदार्थ बालक वीर्यवान् और
मन चाहे पदार्थ न दिये जावें तो बालक अनेक त्रुटियों से युक्त होता है, खराब और भयंकर वस्तु के देखने से बालक भी खराब लक्षणों से युक्त होता है, इस लिये यथा शक्य ऐसा प्रयत्न करना चाहिये कि गर्भिणी स्त्री के देखने में अच्छी २ वस्तु यें ही आवें तथा अच्छी २ वस्तुओं पर ही उस की इच्छा चले,
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