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जैनसम्प्रदायशिक्षा।
की पींडियों में दर्द होता है, प्रसवस्थान फड़कता है, रोमांच होता है (रोंगटे खड़े होते हैं ), सुगन्धित वस्तु में भी दुर्गन्धि मालूम होती है और नेत्रोंके पलक चिमटने लगते हैं। __गर्भाधान के एक मास के अनुमान समय होने पर शरीर में कई एक फेर फार होते हैं-स्त्री का रजोदर्शन बंद हो जाता है, परन्तु नवीन गर्भवती (गर्भ धारण की हुई ) स्त्री को इस एक ही चिन्ह के द्वारा गर्भ रहने का निश्चय नहीं कर लेना चाहिये किन्तु जिस स्त्री के एक वा दो वार सन्तति हो चुकी हो वह स्त्री नियमित समय पर होने वाले रजो दर्शन के न होने पर गर्भस्थिति का निश्चय कर सकती है। __एक मास के पीछे गर्भिणी स्त्री के जी मचलाना और वमन (उलटियां)प्रातःकाल में होने लगते हैं, यद्यपि रजोदर्शन के बंद होने की खबर तो एक मास में पड़ती है, परन्तु जी मचलाना और वमन तो बहुतसी स्त्रियों के एक मास से भी पहिले होने लगते हैं तथा बहुत सी स्त्रियों के मास वा डेढ़ मास के पीछे होते हैं
और ये (मोल और वमन ) एक वा दो मासतक जारी रह कर आप ही बंद हो जाते हैं परन्तु कभी २ किसी २ स्त्री के पांच सात मासतक भी बने रहते हैं तथा पीछे शान्त हो जाते हैं। ___ गर्भिणी स्त्री को जो वमन होता है वह दूसरे वमन के समान कष्ट नहीं देता है इस लिये उस की निवृत्ति के लिये कुछ ओपधि लेने की आवश्यकता नहीं है, हां यदि उस वमन से किसी स्त्री को कुछ विशेष कष्ट मालूम हो तो उसका कोई साधारण उपाय कर लेना चाहिये ।
जिस गर्भिणी स्त्री को ये मोल (जीम चलाना) और वमन होते हैं उसको प्रसूत के समय में कम संकट होता है, इसके अतिरिक्त गर्भिणी स्त्री के मुख में थूक का आना गर्भस्थिति से थोड़े समय में ही होने लगता है तथा थोड़े समयतक रह कर आप ही बन्द हो जाता है, धीरे २ स्तनों के मुख के आस पास का सब भाग पहिले फीका और पीछे श्याम हो जाता है, स्तनों पर पसीना आता है, प्रथम स्तन दावने से कुछ पानी के समान पदार्थ निकलता है परन्तु थोड़े दिन के बाद दूध निकलने लगता है।
गर्भिणी स्त्री का दोहद । तीसरे अथवा चौथे मास में गर्भिणी स्त्री के दोहद उत्पन्न होता है अर्थात् भिन्न २ विषयों की तरफ उस की अभिलाषा होती है, इस का कारण यह है कि, दिमाग (मगज़) और गर्भाशय के ज्ञानतन्तुओं का अति निकट सम्बन्ध है इस लिये गर्भाशय का प्रभाव दिमाग पर होता है, उसी प्रभाव के द्वारा गर्भिणी स्त्री की
१-परन्तु इस का नियम नहीं है कि तीसरे अथवा चौथे मास में ही दोहद उत्पन्न हो, क्योंकि-कई स्त्रियों के उक्त समय से एक आध मास पहिले वा पीछे भी दोहद का उत्पन्न होना देखा जाता है।
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