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जैनसम्प्रदायशिक्षा। रखते हो तो बाल्यावस्था से ही प्राचीन पद्धति के अनुसार सत्य शिक्षा, सुसंगति, सदुपदेश और सतीचरित्रादि के महत्त्व से उनके अन्तःकरण को रंगित करो (रँग दो), पीछे देखो उसका क्या प्रभाव होता है, जब इस प्रकार से सद्व्यवहार किया जायगा तो शीघ्र ही तुम्हारी पुत्रियों के हृदयों में असती स्त्रियों के कुत्सित आचरण पर ग्लानि उत्पन्न हो जायगी और वे इस प्रकार से दुराचारों से दूर भागेंगी जैसे मयूर (मोर) को देखकर सर्प (सांप) दूर भाग जाता है और इस प्रकार का भाव उन के हृदय में उत्पन्न होते ही वे बालायें पवित्र पातिव्रत धर्म का पालन करना सीखकर आपत्तियों का उल्लंघन कर अपने सत्य व्रत में अचल. रहेंगी, तब ही वे लोभ लालच में न फंस कर उस को तृण समान तुच्छ जान कर अपने हृदयसे दूर कर उसकी तरफ दृष्टि भी न डालेंगी, इस लिये अपनी प्यारी पुत्रियों बहिनों और धर्मपत्नियों को पूर्वोक्त रीति से सुशिक्षित करो, जिस से वे भविष्यत् में सद्वर्ताव कर पतिव्रतारूप उत्कृष्ट पद को प्राप्त कर अपने धर्म को यथार्थ रीतिसे पालने में तत्पर होवें कि जिस से इस पवित्र देशकी निवामिनी आर्य महिलाओं का सदा विजय हो कर इस देश का सर्वदा कल्याण हो ।
पति के परदेश होनेपर पतिव्रता के नियम। जो स्त्री पतिपर पूर्ण प्रेम रखनेवाली तथा पतिव्रता है उस के लिये यद्यपि पनि के परदेश में जाने से वियोगजन्य दुःख असह्य है परन्तु कारणवश इस संसार में मनुष्यों को परदेश में जाना ही पड़ता है, इसलिये उस दशा में समझदार स्त्रियों को उचित है कि-जब अपना पति किसी कारण से पर देश जावे तब यदि उसकी आज्ञा हो तो साथ जावे और उस की इच्छा के अनुसार विदेश में भी गृह के समान अहर्निश बर्ताव करे, परन्तु यदि साथ जाने के लिये पति की आज्ञा न हो तथवा अन्य किसी कारण से उस के साथ जानेका अवसर न मिले तो अपने पनि की केसी प्रकार जाने से नहीं रोकना चाहिये तथा जिस समय पति जाने को पर्यन्त ( तयार) हो उस समय अशुभसूचक वचन भी नहीं बोलने चाहियें और के सुन्दर करना चाहिये. किन्तु उस की आज्ञा के अनुसार अपनी सासु श्वशुर आदि अनेक नों के आधीन रह कर उन्हीं के पास रहना चाहिये, सासु ननंद आदि स्वभाववाली के पास सोना चाहिये, जब नक पनि वापिस न आवे तबतक दशा में पुरुष कनियमों को पालते रहना चाहिये, तथा पति के शुभ का चिन्तवन किन्तु उस पुरुष कति की उपस्थिति में उस की प्रसन्नता के लिये जैसे पूर्व वन से युक्त सुशीला स्त्री प्रा उपभोग करती थी उस प्रकार पति की अनुपस्थिति में
स्त्री का पातिव्रत धर्म ना चाहिये, क्योंकि उनम वस्त्र और अलंकार आदि तो है, इसी अलौकिक शक्ति सेन करने के लिये ही पहिने जाते हैं, जब पति तो पर है तथा इसी शक्ति के प्रभावस रञ्जन करने के लिये वस्त्र और अलंकार आदि का सर्व नाश हो जाता है। शृंगार आदि नहीं करना चाहिये, क्योंकि पति के
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