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तृतीय अध्याय ।
पतिव्रता स्त्री के लक्षण । पतिव्रता साध्वी और सती स्त्री वही है जो कि सदा अपनी इन्द्रियों को वश में 'खकर अपने पति पर निर्मल प्रीति रखती है तथा उस की इच्छा के अनुसार चल कर उस की आज्ञा का पालन करती है अर्थात् तन मन और कर्म से अपने पति की सेवा के सिवाय दूसरी कुछ भी इच्छा नहीं रखती है, घर बाहर सब स्वच्छ रमणीक रखती है, अपने पति ही को अपने सुख दुःख का साथी समझ कर उस की आज्ञा के विना घरद्वार कभी नहीं छोड़नी, विना काम कभी बाहर नहीं जाती, सासु को अपनी माता के समान और श्वशुर को अपने पिता के समान जान कर दोनों की तन मन और कर्म से सदा सेवा करती है, ननंद को अपनी बहन के समान समझती है, पति के सोने के पीछे आप सोती है
औ उस के उठने के पहिले आप उठकर स्वच्छता से घर का सब कार्य करती है, पति को नियमपूर्वक प्रथम भोजन कराके फिर आप खाती है, घर के काम से बचे हुए समय में ज्ञान के ग्रहण करने में मन लगाती है, पति का वियोग उस को कभी सहन नहीं होता है अर्थात् जिस प्रकार पानी के विना मीन (मछली) नहीं रह सकती है उसी प्रकार पति के वियोग में वह नहीं रह सब ती है, पति के प्रिय जनों को सम्मान देती है, सासु ननँद तथा सखी के सापके बिना अकेली कहीं भी नहीं जाती है, नीची दृष्टि रखकर घर में काम का करती है, दूसरे पुरुष के साथ व्यर्थ वात चीत नहीं करती है, लजा रखकर किसी के साथ क्रोध से अथवा सहज स्वभाव से भी ऊंचे स्वर से नहीं बोलती है, पतिका श्रम हरण करती है, पति से छिपा कर कुछ भी नहीं करती है, सच्छास्त्र और सद्गुरु का उपदेश श्रवण कर उसी के अनुसार वर्ताव करती है, पनि को धर्मसम्बन्धी तथा व्यवहारसम्बन्धी कार्यों में उत्साह और हिम्मत देकर तन मन और कर्म से उस की सहायता करती है, सन्तान का प्रेम से पाटन पोपण कर उस को धीर, वीर, धार्मिक, पर्वगुणसम्पन्न और विद्वान् बनाने का सदा प्रयत्न करती है, अशुभ आचरण में उस को प्रवृत्त नहीं होने देनी है, पति जो कुछ लाकर देता है उस को घर में सम्भाल कर रखती है, यदि कोई दुष्ट पुरुष कामना की इच्छा से उस के सामने देखे, अथवा प्रिय वचन से रिडावे, अथवा बहुत से मनुष्यों की भीड़ में बहुत आवश्यक (ज़रूरी) काम पड़ जाने से जाना पड़े और उस समय किसी पुरुष का स्पर्श हो जाय तथापि मन में ज़रा भी विकार नहीं लाती है, पर पुरुष के सामने दृष्टि स्थिर करके एक दृष्टि से नहीं देखती है, किन्तु यदि पर पुरुष के सामने देखने की आवश्यकता होती है तो उस को भाई और बाप के समान समझ के देखती है, देवदर्शन
'-अर्थात् हाथ पैर आदि को दाव कर वा मसल कर पति की थकावट को दूर करती है ।।
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