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( ८४ ) समासः सचानकपदानामकत्वापादान विषयो यथा भयस्यांतोभयांत इति । मूत्रस्थार्थस्य वानुपपत्त्युद्भावनं चालना । अस्या एवानेकोपपत्तिभिस्तथैव स्थापनं प्रसिध्धिः। एते च चालना प्रसिध्धी आवश्यक सामायिकव्याख्यावसरे स्वस्थान विस्तरवत्यौद्रष्टव्ये । एवं षाविधं विध्धि जानीहि लक्षणं व्याख्याया इति प्रक्रमाद्गम्यते इति श्लोकार्थः।
पूर्वोक्त छै प्रकार के लक्षणोंमें से साहेता, पद, पदार्थ, और पदविग्रह (समास ) यह चारतो व्याकरण संबंधी हैं और चालना तथा प्रसिध्धि यह दोन्याय संबंधी हैं इससे स्वतः सिद्ध है कि व्याकरण और न्याय का पढ़ना अत्यावश्यकीय है, यादे शब्दशास्त्र तथा तर्कशास्त्र से अनाभेग होगा तो वह पूर्वोक्त षडविध लक्षण को यथार्थ किस प्रकार समझ सकता है ?
(२) लो पूर्वोक्त शास्त्र का और पाठ पढ़ो जिमसे साचे आदि व्याकरण शास्त्र की रीति का विरोध प्रतिभान होता हैतथाहि-सेकिंतं चउणामे २ चविहे पण्णत्ते-तंजहा
आगमेणं लोवेणं पयईए विगारेणं । सेकिंतं आगमेणं आगमेणं पद्मानि पयांसि कुंडानिसेतं आगमेणं । सेकिंतं लोवेणं लोवेणं ते अत्र तेत्र पटो अत्र पटोत्र घटो अत्र घटोत्र सेतं लोवेणं। सेकिंतं पगईए पगईए अग्नी एतौ पटू इमौ शाले एते माले इमे सेतं पगईए । सेकिंतं विगारेणं २ दंडस्य अग्रं दंडाग्रं सा आगता सागता
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