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थोथी पोथी का सेवकों को प्रदान किया ! अपनी सम्यक्त्व को कलंकित कर सुगति को ताला दिया ! जिसको देखकर हमारा चित्त कर्णाद्र होकर मध्यस्थताको अवलंब के बिचारी को दुःखसागर में डूबने से बचाने के वास्ते कुछ प्रत्युत्तर द्वारा इसको पार करने का उपाय शोचता है जोकि बार्तालाप की तरह यहां प्रकट किया जाता है, सो निष्पक्षपाति सज्जनपुरुषों को जरूर आनन्द का दाता होगा।
तटस्थ-क्या पार्वती ने कुछ अनुचित काम किया, है जो आप ऐसे परिश्रम के काम में हाथ डालते हैं ?
विवेचक-अहो ! यही तो बड़ी भारी भूल है, कि अनुचित करके फेर मान में फूलना और मनोमय सुख में झूलना! परन्तु इस में कोई आश्चर्य नहीं है ! अपने मन में माना अहंकार किसको नहीं होता है ?
यतः-उत्क्षिप्य टिभिः पादावास्ते भंगभयादिवः। स्वचित्तकल्पितो गर्वः कस्य नात्रापि विद्यते ॥१॥
भला ! जरा शोचना तो चाहिये कि इतनी लंबी उपाधि की दुम लगने से क्या स्त्रीत्व मिट जावेगा? कदापि नहीं, और बालब्रह्मचर्य का तो स्वयं ही ज्ञान होगा, निज अनुभव की बातों को माने न माने आप ही जाने, या ज्ञानी जाने, हम को इस बात का क्या ज्ञान ? श्री समवायांग सूत्र में फरमाया है कि-"अकुमार भूए जे केइ कुमार भूएत्तिहं वए" जो बालब्रह्मचारी नहीं और अपने आप को
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