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________________ 74 अणुव्रत सदाचार और शाकाहार 36 गुरुचरणों में समर्पण तथा सकारात्मक विचारों से संवरता है जीवन __ हे! जैन धर्म तेरी सदा विजय हो। तेरे विशाल हृदय में आत्म सूर्य का उदय हो।। जैन समुदाय का पवित्र तीर्थ सम्मेदशिखर खतरे में है, जैनेतर समुदाय उस पहाड़ी पर अनाधिकृत कब्जा करने का प्रयास कर रहा है जहाँ से 20 तार्थंकर एवं असंख्यात मुनि मोक्ष पधारे हैं। समाज के अग्रजनों की सीधी पहल से सरकार आश्वासन तो दे रही है लेकिन उसकी नीतियाँ साफ नहीं दिख रही है। परमपूज्य गुरुदेव आचार्य श्री सुनीलसागरजी महाराज ने कहा कि समस्त जैनों का कर्तव्य है कि वे तीर्थक्षेत्रों की रक्षा के लिए जागृत बने और बेहतर तो ये होगा कि वे किसी भी सिद्धक्षेत्र आदि पर यात्रा के दौरान खाने-पीने की कोई वस्तु ना खरीदे और ना उपयोग करें ताकि ऐसे लोगों को वहाँ पर किसी भी प्रकार से हक जताने का अवसर ही न मिले। आज के प्रासंगिक उद्बोधन में परम कृपालु आचार्य भगवन ने कहा कि जीवन में आत्मविश्वास का होना बहत जरूरी है। व्यक्ति तब बुढा महसुस नहीं करता जब वह उम्र से बूढ़ा हो जाता है अपितु उस समय बूढ़ा हो जाता है जब उसका आत्म विश्वास मर जाता है। यह आत्मविश्वास पैदा किया जा सकता है पूर्ण समर्पण से, सकारात्मक सोच से। हे आत्मार्थी बंधुओ! जीवन में कभी हताश न हों आत्मविश्वास न टूटे उसके लिए आज सबसे अधिक जरूरी है- परिवार के बुजुर्गों का Strong Motivation और परिवार के सदस्यों का Strong Dedication दोनों ही पक्षों को अपनी भूमिका व कर्तव्यों को भलीभांति समझना होगा तथा ईमानदारी व प्रेम से उनका निर्वाह करना होगा। बूंद जब सागर को समर्पित होती है, तब मोती बनती है। माटी जब कुम्हार को समर्पित होती है, तब गागर बनती है।। शैतान जब भगवान को समर्पित होता है, तब इंसान बनता है। इंसान जब गुरु को समर्पित होता है, तब पतित से पावन बनता है। गुरु चरणों में प्रभु के चरणों में इंसान जितना नीचे तक जाता है, विनम्र बनता है उतना ही जीवन में ऊपर उठता है। बेहतर जीवन के लिए गहन चिंतन, कठोर परिश्रम, आन्तरिक उत्साह, सकारात्मक सोच एवं अभिप्रेरक वातावरण जरूरी है। प्रायः हम अपनी सोच के कारण ही स्वस्थ या
SR No.034459
Book TitleAnuvrat Sadachar Aur Shakahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLokesh Jain
PublisherPrachya Vidya evam Jain Sanskriti Samrakshan Samsthan
Publication Year2019
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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